टीचर (AI Generated Photo)
Nagpur News: राज्य में शिक्षकों पर इस समय लगभग 40 सरकारी ऐप्स, ऑनलाइन पोर्टल और डिजिटल कामकाज का बोझ है, जिसका सीधा असर उनके शिक्षा कार्य पर पड़ रहा है। शिक्षकों को उपस्थिति, छात्र रिपोर्ट, सर्वेक्षण, प्रशिक्षण और विभिन्न योजनाओं की जानकारी अपडेट रखने के लिए लगातार मोबाइल और कंप्यूटर पर काम करना पड़ रहा है।
इससे शिक्षकों में असंतोष बढ़ रहा है और प्राथमिक शिक्षक संघों ने भी सभी ऐप्स को शिक्षक अनुकूल एकीकृत व्यवस्था में लाने की मांग की है। शिक्षकों को हर दिन अलग-अलग ऐप्स में लॉग इन करके जानकारी भरनी पड़ती है। इनमें सरल, शालार्थ, यूडीआईएसई, मिड-डे मील ऐप, प्रेरणा, प्रेरणा डीबीटी, महाडीबीटी, दीक्षा, रीड एलॉग निपुण प्लस, शारदा, उल्लास, समर्थ पोर्टल, आईगॉट कर्मयोगी, निपुण टीचर ऐप, हरिमिका, इको क्लब, महास्कूल, प्रशस्त, स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण, खान अकादमी, जीपीएस, फिट इंडिया, परीक्षा पोर्टल जैसे कई ऐप शामिल हैं।
किसी को छात्र उपस्थिति, किसी को मिड-डे मील रिपोर्ट और किसी को प्रशिक्षण और सर्वेक्षण के आंकड़े अपलोड करने होते हैं। संगठनों ने बताया कि यह स्थिति भारतीय संविधान में शिक्षा के अधिकार अधिनियम और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों के विपरीत है। शिक्षकों को उनके मूल शिक्षा कार्य से दूर रखा जा रहा है और प्रशासनिक व तकनीकी जिम्मेदारियों के कारण शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।
सरकार को शिक्षकों के लिए एक एकीकृत डिजिटल पोर्टल बनाना चाहिए। जिससे सभी ऐप्स का काम संभाला जा सकेगा। इससे डेटा प्रबंधन में सुविधा होगी और शिक्षकों का तनाव कम होगा। शिक्षकों ने सरकार से मांग की है कि शिक्षा प्रणाली के डिजिटल आधुनिकीकरण का कोई विरोध नहीं है, बल्कि इसे शिक्षक-अनुकूल और कुशल तरीके से लागू किया जाए, ताकि शिक्षा की गुणवत्ता बनी रहे।
शिक्षक संघों ने स्कूलों में डिजिटल डाटा एंट्री असिस्टेंट के पद सृजित करने की मांग की है। इससे शिक्षकों का समय बचेगा और वे शिक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकेंगे। संघों ने यह भी स्पष्ट किया है कि वाट्सएप या सोशल मीडिया के माध्यम से विभिन्न आदेश और लिंक भेजने की प्रथा को बंद किया जाए।
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शिक्षकों के अनुसार, इतने सारे ऐप्स के इस्तेमाल से उनके मोबाइल लगातार हैंग होते रहते हैं। दिन का एक बड़ा हिस्सा ऑनलाइन काम में बीतता है। परिणामस्वरूप, पढ़ाने के लिए समय ही नहीं बचता। कई शिक्षकों को देर रात तक ऑनलाइन ट्रेनिंग और रिपोर्ट जमा करने का काम करना पड़ता है। जिसका असर उनके निजी जीवन पर भी पड़ रहा है।