File Photo
नागपुर : नागपुर में आज मारबत त्यौहार मनाया जाएगा। पीली मारबत पूरी तरह से तैयार हो चुकी है। इसकी स्थापना हर साल गोकुल अष्टमी के दिन की जाती है। अभी दूर-दूर से भाविक मारबत देवी के दर्शन के लिये आये हैं। कहते हैं यहा पर मांगी जाने वाली हर मन्नत पूरी हो जाती है। इसी तरह काली मारबत और बडग्या भी तैयार किये जाते हैं।
उपराजधानी नागपुर देश का ऐसा शहर है जहां से सर्वप्रथम मारबत की शुरुआत हुई थी और आज सर्वाधिक मारबत (देवी स्वरुप पुतला) यहीं से निकाले जाते हैं। तान्हा पोला के दौरान मारबत और बडग्या (कचरे से बना पुतला) निकालते हैं। शहर में ऐसे कई मंडल हैं, जिनके द्वारा बडग्या और मारबत का निर्माण किया जाता है। तान्हा पोला के दौरान मारबत का जुलूस निकालने की प्रथा शहर में कई वर्षों से चली आ रही है।
कहा जाता है कि मारबत और बड़ग्या को बुराई के प्रतीक के रूप में माना जाता है। इस परंपरा को चलाने के लिए मारबत का निर्माण करनेवाले कारागीरों की पीढ़ियां अब भी काम कर रही हैं। यह परंपरा काली और पीली मारबत बनाकर आज भी चलाई जा रही है। नागपुर के लोग इस उत्सव को बुरी ताकतों और बीमारियों को दूर रखने के लिए बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। इस उत्सव को लेकर लोग सड़कों पर जुलूस निकालकर गानों की धुन पर थिरकते हैं।
यह अनूठा पर्व नागपुर की खास पहचान है। मारबत 1885 से बनाई जा रही है। इसके निर्माण की शुरुआत मूर्तिकार गणपतराव शेंडे ने की थी। उनके जाने के बाद उनके बेटे भीमाजी शेंडे ने ये प्रथा जारी रखी और आज इनकी तीसरी पीढी यानी की गजानन शेंडे इसे निभा रहे है। आज मारबत को 149 वर्ष पूरे हो चुके हैं।
ऐसी धारणा है कि मारबत को शहर से बाहर ले जाकर जलाने से सारी बुराइयां, बीमारियां, कुरीतियां भी खत्म हो जाती हैं।
कहा जाता है कि इसे मनाने का उद्देश्य शहर में फैल रही बीमारियों से मुक्ति पाना था। उस समय शहर में बीमारियों का दौर सा चल पड़ा था। तब लोगों में एक धारणा बन गई थी कि मारबत का निर्माण करने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है और इसी तरह लोगों ने इसका निर्माण शुरू किया। ब्रिटिश काल से चली आ रही यह प्रथा इसे सिर्फ यही कारण नहीं है। इसके पीछे एक धार्मिक कारण भी है।
एक और कारण के बारे में तीसरा शिल्पकार गजानन शेंडे ने बताया के श्रीकृष्ण को दूध पिलाने गयी पूतना राक्षसी का वध होने के बाद गोकुल निवासियों ने घरका सभी कचरा निकालकर उसका जुलूस बनाया और उसे गांव के बाहर ले जाकर दहन किया था और सारी बुराइयों को नष्ट करने की पहल शुरू की थी। उसी का आधार लेके ये मारबत मानाया जाता है।
कहा जाता है कि श्रीकृष्ण को दूध पिलाने गयी पुतना राक्षसी विदर्भ की राणी थी। इसीलिए ये विदर्भ में मानाया जाता है। मारबत के 100 वर्षों बाद पिली मारबत को देवी का स्वरूप मना जाने लगा। कई लोगों के साथ चमत्कार होणे लगे, उनकी मन्नतें पूरी होने लगी। लोगों की श्रद्धा बढने लगी और आज मारबत का दर्शन करने नेताओं से लेकर दूर दूर से लोग आते हैं। श्रद्धा, भक्ति और उत्साह के साथ मनाते हैं।