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सावरकर को पुलिस ने किया तड़ीपार, हाई कोर्ट से भी राहत नहीं, याचिका का कर दिया निपटारा

High Court: महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, 1951 के प्रावधानों के तहत पुलिस द्वारा आदेश जारी कर एस.ए. सावरकर को तड़ीपार किया। इसे चुनौती देते हुए सावरकर द्वारा हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई।

  • By प्रिया जैस
Updated On: Sep 11, 2025 | 01:55 PM

नागपुर न्यूज

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Nagpur News: महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, 1951 के प्रावधानों के तहत पुलिस द्वारा आदेश जारी कर एस.ए. सावरकर को तड़ीपार किया गया। इसे चुनौती देते हुए सावरकर द्वारा हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई किंतु दोनों पक्षों की दलीलों पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश अनिल पानसरे और न्यायाधीश सिद्धेश्वर ठोंबरे ने इसी अधिनियम की धारा 60 के तहत अपील दायर करने की प्रक्रिया निर्धारित होने का हवाला देते हुए राहत देने से इनकार कर दिया।

साथ ही उपलब्ध वैकल्पिक और प्रभावी उपाय का लाभ उठाने की स्वतंत्रता भी दी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता एम।वी। बूटे और राज्य की ओर से सहायक सरकारी वकील आर।वी। शर्मा ने पैरवी की। याचिकाकर्ता के वकील ने कुछ पूर्व के निर्णयों का हवाला दिया जिनमें हाई कोर्ट ने समान रिट याचिकाओं पर सुनवाई की थी। इनमें 23 अगस्त, 2017 को तय हुई आपराधिक रिट याचिका संख्या 541/2017 (विजय @ टायसन बनाम महाराष्ट्र राज्य) और 12 जून, 2013 को तय हुई आपराधिक रिट याचिका संख्या 172/2013 (श्रीमती सुरेखा वाघमारे बनाम महाराष्ट्र राज्य) को भी कोर्ट के समक्ष रखा गया।

सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशानिर्देश

सुनवाई के बाद अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले ‘यूनियन ऑफ इंडिया बनाम टी।एन। वर्मा’ पर ध्यान केंद्रित किया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि जब किसी वादकारी के पास वैकल्पिक और समान रूप से प्रभावी उपाय उपलब्ध हो तो उसे विशेष क्षेत्राधिकार के तहत हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर करने के बजाय उस उपाय का पालन करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी अवलोकन किया था कि यद्यपि किसी अन्य उपाय का अस्तित्व अदालत के रिट जारी करने के क्षेत्राधिकार को प्रभावित नहीं करता है लेकिन रिट प्रदान करने के मामले में एक पर्याप्त कानूनी उपाय का अस्तित्व एक महत्वपूर्ण विचार है।

उपलब्ध है वैधानिक उपाय

सुप्रीम कोर्ट ने इसके अतिरिक्त ‘राधाकृष्णन इंडस्ट्रीज बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य’ मामले में वैकल्पिक उपाय पर कानून का सार प्रस्तुत करते हुए कहा था कि जब एक अधिकार किसी कानून द्वारा बनाया जाता है और वह कानून स्वयं उस अधिकार या दायित्व को लागू करने के लिए उपाय या प्रक्रिया निर्धारित करता है तो संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत विवेकाधीन उपाय को लागू करने से पहले उस विशेष वैधानिक उपाय का सहारा लेना चाहिए।

यह भी पढ़ें – सेंट्रल जेल में फिर भिड़े कैदी, इस कारण हुआ झगड़ा, रहाटेनगर टोली में पुलिस का कोंबिंग ऑपरेशन

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिका की ‘एंटरटेनबिलटी’ (सुनवाई योग्य होना) और ‘मेंटेनेबिलटी’ (बनाए रखने योग्य होना) अलग-अलग अवधारणाएं हैं। इस मामले में याचिका बनाए रखने योग्य हो सकती है लेकिन याचिकाकर्ता के लिए उपलब्ध वैधानिक उपाय को देखते हुए इसे ‘एंटरटेन’ नहीं किया जा सकता है। इन सभी बिंदुओं पर विचार करते हुए हाई कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया और याचिकाकर्ता को महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, 1951 के तहत उपलब्ध वैकल्पिक उपाय का लाभ उठाने की स्वतंत्रता दी।

Savarkar banished by police no relief from high court petition disposed

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Published On: Sep 11, 2025 | 01:55 PM

Topics:  

  • High Court
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