रेलवे को लगता है ट्विटर से डर (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Nagpur News: कोविड काल खत्म होने के बाद रेलवे द्वारा मनमाने ढंग से ट्रेनों के स्टॉपेज में कटौती का खामियाजा हजारों रेल यात्री भुगत रहे हैं। अब हजारों यात्रियों की मोदी सरकार और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव पर नाराजगी सामने आ रही है। हैरानी की बात है कि यात्रियों की परेशानी समझकर स्टॉपेज बढ़ाने की बजाय ‘रेल मदद’ से कॉल करके सोशल मीडिया अभियान बंद करने को कहा जा रहा है।
इसका ताजा उदाहरण मध्य रेल नागपुर मंडल के पांढुरना के यात्रियों द्वारा टि्वटर पर जारी 5 ट्रेनों के स्टॉपेज के साथ ट्रेन 22111/12 नागपुर-भुसावल-नागपुर दादाधाम एक्सप्रेस वाया इटारसी को दोबारा शुरू की मांग को लेकर देखने में आया। रेल यात्रियों के हित में शुरू किए गए ट्विटर अभियान ने अब एक नया मोड़ ले लिया है।
नागपुर मंडल के पांढुरना शहर को जिला घोषित कर कर दिया गया। इस व्यापारिक शहर में कोविड से पहले इस स्टेशन पर सप्ताह में अप और डाउन दिशा से 50 से ज्यादा ट्रेनें रुकती थीं। कोविड काल के बाद अचानक रेलवे ने फरमान सुनाया और 40 से ज्यादा ट्रेनों के स्टॉपेज बंद कर दिए।
ऐसे में रेल यात्रियों और नागरिकों ने मिलकर ट्विटर पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, मध्य रेल जोन के महाप्रबंधक, नागपुर मंडल के मंडल रेल प्रबंधक समेत रेल यात्रियों के मददगार ऑनलाइन प्लेटफॉर्म रेल मदद तथा कई जनप्रतिनिधियों को टैग करते हुए लगातार ट्वीट किए जा रहे हैं।
इन ट्वीट्स में पांढुरना स्टेशन पर पूर्व में रुकने वाली ट्रेनों जैसे दादाधाम एक्सप्रेस एवं अन्य महत्वपूर्ण ट्रेनों के स्टॉपेज को पुनः शुरू करने की मांग की जा रही है। इस स्टेशन पर पहले कई महत्वपूर्ण ट्रेनें रुकती थीं जिनमें यात्रियों की संख्या भी अच्छी-खासी रहती थी। व्यापारी, छात्र, मरीज और नौकरीपेशा लोग इस सुविधा के बंद हो जाने से भारी परेशानियों का सामना कर रहे हैं।
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टि्वटर पर रेलवे के आधिकारिक हैंडल रेल सेवा ने प्रारंभिक रूप से यात्रियों के ट्वीट्स पर धन्यवाद देते हुए रेल मदद पोर्टल पर सुझाव दर्ज कराने की सलाह दी। लेकिन बाद में कथित रूप से कुछ यात्रियों को फोन कॉल करके यह अभियान बंद करने का ‘नरम दबाव’ डाला गया जिससे जनता में असंतोष फैल गया।
अभियान में शामिल यात्रियों ने कहा कि क्या रेल मदद वास्तव में यात्रियों की मदद के लिए है या फिर उनकी आवाज को दबाने का एक माध्यम बन गया है?
रेल मदद द्वारा अपनाये गये रवैये के बाद अब यह मामला सिर्फ एक स्टेशन, एक ट्रेन या स्टॉपेज का नहीं रह गया है। जब भारतीय रेलवे के यात्री लोकतांत्रिक ढंग से सोशल मीडिया पर अपनी मांग रख रहे हैं तो रेल मदद जैसी संस्थाओं को उन्हें सहयोग देना चाहिए, न कि उन्हें चुप कराने का प्रयास करना चाहिए। यदि जल्द कोई सकारात्मक कार्यवाही नहीं की जाती है तो यह आंदोलन और भी तेज हो सकता है।