पब (सौजन्य-सोशल मीडिया, कंसेप्ट फोटो)
Nagpur News: शहर में छापेमारी के लिए अलग-अलग स्क्वाड बनाए गए हैं। सभी को स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि ‘ऑन स्पॉट’ पल-पल जानकारी उपलब्ध करायें। ये सक्रियता कितने दिनों तक चलेगी इसे लेकर क्षेत्र के नागरिकों में उत्सुकता है। उनका एक सवाल भी है ‘खबर’ प्रकाशित होने के पहले पुलिस विभाग क्या कर रहा था? आखिर ‘धुएं’ को इतना फैलने क्यों दिया गया कि यह ‘मुख्यमंत्री आवास’ तक पहुंच गया। लोगों का जीना मुश्किल हो गया।
पब, लाउंज और हुक्का पार्लर सिटी के लिए नासूर कैसे बन गए? इसके लिए ‘मर्डर’ तक होने लगा। दुर्घटनाएं तो आम बात हो गईं। मारपीट भी सामान्य सी बात हो गई। शंकरनगर जैसे चौक सुबह तक ‘गुलजार’ रहने लगे। ऐसा नहीं है कि इसके लिए केवल कोई एक विभाग जिम्मेदार है। इसके लिए महानगरपालिका के अधिकारी भी उतने ही जिम्मेदार हैं क्योंकि गलत निर्माण होने के बाद भी कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाती है। आंख बंद कर कैसे मंजूरी दी गई और जब बड़े-बड़े लोग इसकी शिकायत कर रहे तब भी ‘खामोशी’ छायी रहती है।
दूसरे नंबर का कोई दोषी है तो वह है उत्पाद शुल्क विभाग। विभाग के अधिकारियों की आंखों में ‘राजस्व की पट्टी’ इतनी गहरी बंध गई है कि इनके कदम हिलते तक नहीं हैं। देखकर भी आंखें मूंद लेते हैं। इनके पास अधिकार है कि कार्रवाई कर लोगों को रास्ते में ले आएं लेकिन क्या मजाल है कि कभी एक पर भी कार्रवाई की गई हो। तमाम प्रकार के उल्लंघन भी ‘नजरअंदाज’ हो जाते हैं।
बार का फैलाव, टाइम का उल्लंघन, नाच-गाने की अनुमति नहीं होने पर लाइसेंस कैंसिल के पूर्ण अधिकार वरिष्ठ अधिकारियों के पास हैं लेकिन अधिकार को ‘किताबों’ में बंद कर दिया गया है। किताबों के ऊपर ‘मोटी पट्टी’ धूल की चढ़ गई है। इस विभाग के मुखिया जिलाधिकारी होते हैं लेकिन उन्हें कभी सही जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जाती।
रातभर म्यूजिक और धुएं की चपेट से पूर्व राज्यसभा सांसद भी नहीं बच पाए हैं। सांसद के घर के हर कोने में पब, लाउंज और हुक्का पार्लर का ‘पहरा’ सा लग गया है। संभव है पूर्व सांसद ने इसकी शिकायत भी की हो और उनकी बातों को भी नजरअंदाज कर दिया गया हो। यही कारण है कि एक के बाद एक दुकान ‘दान’ के भरोसे खुलती चली गईं और पूरा परिसर ‘संगीतमय’ हो गया।
जो स्थिति शंकरनगर, रामनगर, धर्मपेठ में है, इसके लिए महानगरपालिका के इंजीनियर, जूनियर इंजीनियर पूरी तरह से दोषी हैं। विधायक की शिकायत के बाद भी इन्हें बचाकर रखा गया है। बिना मंजूरी वाली बिल्डिंग में सब खेल चल रहा है जिससे पूरा शहर परेशान है लेकिन इनके कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है। अगर मनपा इन बिल्डिंगों की पानी, बिजली ही काट दे तो पूरा ‘संकट’ समाप्त हो जाएगा।
पुलिस की दौड़ भी खत्म हो जाएगी लेकिन मनपा अधिकारी इतना करने में भी घबरा रहे हैं। आखिर ये किसके दबाव में हो रहा है? सभी के समझ से परे है। लोगों की परेशानियों को भी दरकिनार कर दिया गया है। काछीपुरा का भी यही हाल है। न ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट है, न ही कोई कागजात लेकिन सभी को बिजली-पानी मिल रहा है। यह ‘चमत्कार’ है। निश्चित रूप से किसी ‘चमत्कारी चीज’ के कारण ही ऐेसा होने दिया जा रहा है।
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