धम्मचक्र प्रवर्तन दिन दीक्षाभूमि (सौजन्य-IANS)
Dhammachakra Pravartan Day 2025: नागपुर में श्वेत वस्त्रों में सजे धम्मबांधवों के कारण दीक्षाभूमि परिसर नीले पक्षियों की भीड़ से भर उठा। यह परिसर पंचशील और नीले झंडों के साथ, शाम के तांबे जैसी रोशनी में नहाया हुआ दिख रहा था, जहां अनुयायियों ने धम्म क्रांति को अभिवादन किया। नीली टोपियों में समता सैनिक दल की महिलाओं की परेड आकर्षण का केंद्र बनी।
समता सैनिक दल के कार्यकर्ता नीली टोपी पहनकर सुरक्षा व्यवस्था संभाल रहे थे। दीक्षाभूमि परिसर में हर तरफ मंगल मैत्री का वातावरण दिखाई दे रहा था। बोधिवृक्ष की छांव में कवि वामनदादा कर्डक के गीत ‘बुद्धाकडे जनता वळे, भीमा तुझ्या जन्मामुळे…’ के बाद, वर्तमान स्थिति का आकलन करने वाला और कार्यकर्ताओं को लड़ने की प्रेरणा देने वाला क्रांतिनाद भी गूंज रहा था।
बौद्ध भंते मंगल कामनाएं कर रहे थे। इस मंगल मैत्री के माध्यम से ही भारत बुद्धमय हो सकेगा, ऐसा विश्वास व्यक्त करते हुए बुद्ध धम्म और संघ वंदना के स्वर चारों ओर सुनाई दे रहे थे।
दीक्षाभूमि पर बड़े पैमाने पर किताबों की दुकानें सजी थीं। किताबों की दुकानों के साथ ही यहां बाबासाहेब और बुद्ध के जीवन संघर्ष का इतिहास गीत-संगीत के माध्यम से बताने वाली सीडी, डीवीडी, मूर्तियां और तस्वीरों की भी भीड़ थी। अशोक विजयादशमी की तुलना में, नागपुर के अनुयायियों ने अपने उद्धारकर्ता के अस्थिकलश को वंदन करने के लिए 14 अक्टूबर को दीक्षाभूमि पर अधिक भीड़ की। अस्थिकलश के दर्शन के लिए अनुयायी देर रात तक आते रहे। आंदोलनों के कार्यकर्ता, गायक, या वादक—सभी की कैसेटों से डॉ. अंबेडकर के कृतित्व पर काव्य क्रांति का नाद जारी रहा।
दीक्षाभूमि परिसर में समता सैनिक दल द्वारा एक चर्चा सत्र का आयोजन किया गया। चर्चा का मुख्य बिंदु यह था कि 1956 की बाबासाहेब की धम्म दीक्षा समाज के लिए एक क्रांति थी, जिसने नैतिकता और वैज्ञानिकता पर आधारित धम्म का मार्ग प्रशस्त किया। इससे भिक्खू संघ का निर्माण हुआ, लेकिन धम्म प्रसार का काम अपेक्षित स्तर पर नहीं हो पाया।
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वक्ताओं ने कहा कि बाबासाहेब का भारत को बुद्धमय बनाने का सपना अभी भी अनुयायियों की आंखों में है। वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि इस सपने को पूरा करते समय, 69 वर्षों के बाद, अब अंबेडकरी समाज के सामने एक बड़ी ‘प्रतिक्रांति’ खड़ी हो गई है। अब इस प्रतिक्रांति का सामना करने का समय आ गया है। इस चर्चा सत्र में राष्ट्रीय संगठक सुनील सारिपुत्त सहित कई अन्य लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए।