दीक्षाभूमि (सौजन्य-आईएएनएस)
Deekshabhoomi: नागपुर में शेगांव की तर्ज पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रद्धा का स्थान बने दीक्षाभूमि के विकास के लिए अधिवक्ता शैलेश नारनवरे ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। याचिका पर बुधवार को सुनवाई के बाद न्यायाधीश अनिल किल्लोर और न्यायाधीश रजनीश व्यास ने प्रन्यास द्वारा बनाए गए विस्तृत प्लान की जानकारी लेकर कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखने का निर्देश याचिकाकर्ता को दिया।
सुनवाई के दौरान अधिवक्ता नारनवरे ने कहा कि दीक्षाभूमि के विकास के लिए राज्य सरकार की ओर से 200 करोड़ मंजूर किए गए थे जिनमें से 130 करोड़ का आवंटन भी किया जा चुका है। प्रन्यास और एनएमआरडीए के माध्यम से इसका विकास किया जाना था जिसके लिए हाई कोर्ट ने कई बार आदेश भी दिया किंतु लंबे समय से दीक्षाभूमि का विकास ठप पड़ा हुआ है। प्रन्यास की पैरवी कर रहे वकील ने कोर्ट को बताया कि अंडरग्राउंड पार्किंग व्यवस्था को लेकर विरोध होने के बाद विकास के प्लान में कुछ परिवर्तन होने के कारण मामला अटका हुआ है।
बुधवार को सुनवाई के दौरान अधिवक्ता नारनवरे ने कहा कि दीक्षाभूमि के विस्तार के लिए समीप की 16.43 एकड़ और स्वास्थ्य विभाग की 3.4 एकड़ जमीन का आवंटन करने का अनुरोध सरकार से किया गया था किंतु इस जमीन के संदर्भ में भी कोई निर्णय नहीं हो पाया है। इस पर कोर्ट ने पूछा कि यह जमीन किस विस्तार के लिए चाहिए, जबकि इसके पूर्व दीक्षाभूमि के लिए दी गई जमीन में से कुछ हिस्से पर कॉलेज बनाया गया है।
क्या अतिरिक्त जमीन कॉलेज के विस्तार के लिए चाहिए या फिर दीक्षाभूमि के लिए? इसका खुलासा करने को कहा। किंतु याचिकाकर्ता की ओर से इसका खुलासा नहीं किया गया। कोर्ट ने शेगांव का उदाहरण देते हुए कहा कि पहले इसका विस्तृत प्लान कोर्ट के सामने रखा गया था जिसके बाद कोर्ट ने चरणबद्ध तरीके से समय-समय पर आदेश दिए जिससे विकास संभव हो सका है। इसी तरह दीक्षाभूमि के लिए क्या प्लान है? इसका लेखाजोखा रखा जाना चाहिए। प्लान के अनुसार कौनसा विकास ठप पड़ा है इसका स्पष्ट खुलासा होना चाहिए।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने 130 करोड़ में अब तक हुए खर्च की जानकारी प्रन्यास से मांगी जिस पर एनआईटी की पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि दीक्षाभूमि पर अंडरग्राउंड पार्किंग के लिए 21 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जबकि अन्य कार्य के लिए 3 करोड़ का खर्च हुआ है। इस तरह से 24 करोड़ रुपए खर्च हो चुके है। किंतु पार्किंग का विरोध होने के कारण 21 करोड़ अब बर्बाद हो चुके हैं।
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सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि नये सिरे से दीक्षाभूमि के विकास के लिए 4 नये प्लान तैयार किए गए। दीक्षाभूमि स्मारक समिति को 4 विकल्प दिए गए किंतु इनमें से किसी भी प्लान पर अब तक मंजूरी नहीं दी गई है जिससे मामला अटका हुआ है। कोर्ट का भी मानना था कि यदि प्रन्यास ने स्वयं किसी प्लान पर काम शुरू किया और बाद में समिति की ओर से इसका विरोध हुआ तो फिर से पैसों की बर्बादी हो जाएगी। ऐसे में पहले प्लान पर मंजूरी जरूरी है।