हाई कोर्ट (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Nagpur News: अतिरिक्त मुख्य सचिव इकबाल सिंह चहल द्वारा महाराष्ट्र खतरनाक गतिविधियों (झुग्गी-झोपड़ी के मालिक, शराब के तस्कर, ड्रग-अपराधी, खतरनाक व्यक्ति) अधिनियम, 1981 (MPDA Act) की धारा 12 के तहत आदेश पारित किया गया जिसके आधार पर गिरफ्तार किए जाने को चुनौती देते हुए मृणाल गजभिए ने हाई कोर्ट में फौजदारी रिट याचिका दायर की।
याचिका पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने आदेश के तरीके पर गंभीर चिंता व्यक्त की, साथ ही याचिका पर दलीलें खत्म कर फैसला सुरक्षित कर लिया। गत समय कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि हिरासत आदेश को ‘सोचे-समझे बिना’ (without application of mind) जारी किया गया है। अदालत का मानना था कि अतिरिक्त मुख्य सचिव ने धारा 12 के तहत अपेक्षित औपचारिक आदेश पारित करने की बजाय केवल नोट-शीट पर कुछ टिप्पणियां करके आदेश पारित किया था।
कोर्ट ने राज्य सरकार को हिरासत आदेश की प्रति रिकॉर्ड पर रखने के आदेश दिए थे जिसका पालन नहीं किया गया। इस संदर्भ में पूछे जाने पर सरकारी पक्ष ने किसी तरह का जवाब तक नहीं दिया। इस पर कोर्ट ने कहा कि कुछ कारणों से अतिरिक्त मुख्य सचिव द्वारा आदेश के अनुपालन से बचा जा रहा है।
सुनवाई के दौरान सहायक सरकारी वकील का मानना था कि उन्हें डेस्क ऑफिसर से निर्देश मिले थे जिस पर कोर्ट का मानना था कि अदालत को मुख्य सचिव या अतिरिक्त मुख्य सचिव से निर्देशों की उम्मीद थी, जबकि डेस्क ऑफिसर ने फाइल देखे बिना ही निर्देश दिए जारी कर दिए। सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने वाट्सएप पर प्राप्त आदेश की एक प्रति अदालत को दिखाई। यह आदेश 13 मई 2025 को अतिरिक्त मुख्य सचिव इकबाल सिंह चहल द्वारा पारित किया गया था।
आदेश में कहा गया था कि मामले के सभी तथ्यों, पुलिस रिपोर्ट और सलाहकार बोर्ड की 2 मई 2025 की राय पर विचार करने के बाद, हिरासत आदेश की पुष्टि की गई है और बंदी की हिरासत को हिरासत की तारीख से 12 महीने की अवधि के लिए जारी रखा जाएगा। कोर्ट ने गत आदेश में कहा कि हिरासत जारी रखना क्यों उचित ठहराया गया, इसे लेकर कोई कारण नहीं दिया गया है।
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धारा 12 के तहत राज्य सरकार को सलाहकार बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार करके यह सुनिश्चित करना होता है कि हिरासत का पर्याप्त कारण है। राज्य सरकार को सलाहकार बोर्ड की राय/रिपोर्ट पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। अधिनियम की धारा 12 का अनुपालन अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि हिरासत की पुष्टि का आदेश यह प्रमाणित करेगा कि एक व्यक्ति बिना मुकदमे के सलाखों के पीछे रहेगा। आदेश में यह भी उजागर करना जरूरी है कि उपलब्ध सामग्री पर सोचा-समझा गया है।