सुप्रीम कोर्ट का फैसला (डिजाइन फोटो)
TET Exam: सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से राज्य के हजारों शिक्षकों का भविष्य अधर में लटक गया है। अब शासकीय सेवाओं में कार्यरत सभी शिक्षकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास करना अनिवार्य कर दिया गया है। परीक्षा के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया 15 सितंबर से शुरू होगी, जबकि यह परीक्षा 23 नवंबर को आयोजित की जाएगी। इस निर्णय से शिक्षकों में जबरदस्त आक्रोश फैल गया है।
कई शिक्षक संगठन इसे अन्यायपूर्ण बताते हुए विरोध कर रहे हैं, तो कुछ लोग शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इसका समर्थन भी कर रहे हैं। 1 सितंबर को दिए गए निर्णय के अनुसार, जिला परिषद, नगर परिषद, नगरपालिका और महानगरपालिका क्षेत्र की अनुदानित, अंशतः अनुदानित व विनाअनुदानित शालाओं के सभी शिक्षकों को टीईटी उत्तीर्ण करना आवश्यक होगा।
शिक्षक संगठनों का कहना है कि 2013 पूर्व नियुक्त शिक्षक इस दायरे से बाहर रखे जाएं। उनका तर्क है कि दशकों तक सेवा देने वाले शिक्षकों को टीईटी देने के लिए बाध्य करना लाखों शिक्षकों का भविष्य संकट में डालने जैसा है। पहली से आठवीं तक पढ़ाने वाले शिक्षकों को दो साल में टीईटी पास करना अनिवार्य किया गया है। अन्यथा उन्हें सख्ती से सेवानिवृत्त कर दिया जाएगा।
सेवा में प्रवेश के समय सीईटी, टीईटी जैसी परीक्षाएं देने वाले शिक्षकों को फिर से टीईटी देना अन्याय है। हां, पदोन्नति के लिए अनिवार्य करना उचित होगा।
– सतीश चिंघालोरे, शिक्षक
टीईटी से केवल दक्ष और योग्य शिक्षक ही कक्षा में आएंगे। इससे शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी और समाज को सक्षम पीढ़ी मिलेगी।
– रविकुमार लांजेवार
25-30 साल की समय पर प्रशिक्षण लेने वाले शिक्षको को फिर परीक्षा में धकेलना उनके अनुभव को नकारना है।
– प्रभाकर मेश्राम, शिक्षक
शिक्षा की गुणवत्ता के लिए टीईटी जैसी परीक्षा लिया जाना जरूरी है। सेवा में हो या नए हो की जांच होनी चाहिए।
– अतुल गणवीर, शिक्षाप्रेमी
आधुनिक शिक्षा पद्धति से शिक्षक भी अपडेट होना चाहिए, इसके लिए टीईटी सही साधन है। मैं इस निर्णय का स्वागत करता हूँ।
– जयेंद्र करहाडे, डी. एड. बेरोजगार
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वर्षों का अनुभव नकारकर परीक्षा अनिवार्य करना हर हाल में गलत है। सेवा में रहते हुए यह जबरदस्ती अन्यायपूर्ण है, इसका पुनर्विचार होना चाहिए।
– अशोक गिरी, राज्य पुरस्कृत शिक्षक
सेवानिवृत्ति के निकट पहुंच चुके शिक्षकों को परीक्षा देने को मजबूर करना हास्यास्पद है। 25-30 वर्षों की सेवा के बाद यह थोपना अनुचित है।
– दारासिंह चव्हान, जिलाध्यक्ष, विदर्भ निजी प्रा. शि. संघ, भंडारा