छोटा मटका (फाइल फोटो)
Nagpur News: नागपुर के ताडोबा-अंधारी व्याघ्र प्रकल्प के बफर क्षेत्र में अपनी बादशाहत कायम करने वाले प्रसिद्ध बाघ ‘छोटा मटका’ की सेहत लगातार बिगड़ती जा रही है जिससे उसके प्रशंसक गहरी चिंता में डूब गए हैं। उपचार में कथित टालमटोल के चलते प्रशंसकों ने सीधे राज्य सरकार को ई-मेल भेजकर ‘छोटा मटका’ की सेहत पर गंभीरता से ध्यान देने की मांग की है। इस संदर्भ में समाचार पत्र में छपी खबर पर स्वयं संज्ञान लेते हुए हाई कोर्ट ने जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया।
गुरुवार को अदालत मित्र वाई.एन. सांबरे की ओर से कोर्ट के समक्ष जनहित याचिका रखी गई। इसके बाद हाई कोर्ट ने केंद्रीय वन विभाग, राज्य के वन विभाग, ताडोबा अंधारी टाइगर रिजर्व (TATR) सीसीएफ, पीसीसीएफ (वाइल्ड वाइफ), टीएटीआर के बफर जोन के डिप्टी डायरेक्टर, नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी और वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो को नोटिस जारी कर जवाब दायर करने के आदेश दिए।
समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार पिछले कुछ सालों में ‘छोटा मटका’ ने अपनी बहादुरी और पर्यटकों से सहजता के कारण सबका दिल जीत लिया है। अपने अधिकार क्षेत्र पर राज करने की उसकी प्रवृत्ति, किसी को भी इसमें घुसने न देने का बाना और दूसरों द्वारा प्रयास करने पर तुरंत अपनी जगह दिखाने की उसकी निडरता ने उसे काफी कम समय में ही लोकप्रिय बना दिया लेकिन प्रशंसकों की तरह उसके दुश्मन भी हैं और ऐसे दुश्मनों का सामना करते हुए ‘छोटा मटका’ की जान पर कई बार बन आई।
‘छोटा मटका’ प्रसिद्ध बाघिन ‘छोटी तारा’ और शक्तिशाली बाघ ‘मटकासुर’ का वंशज है। उसने ‘मोगली’ और ‘बजरंग’ जैसे अन्य प्रभावशाली बाघों से मिलीं चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया और एक विशाल क्षेत्र पर अपना साम्राज्य स्थापित किया है। उसका मुक्त विचरण अलिझंझा से निमढेला तक फैला हुआ है।
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हाल ही में ‘छोटा मटका’ की ताडोबा-अंधारी व्याघ्र प्रकल्प के बफर क्षेत्र में आवास के लिए ‘ब्रह्मा’ नामक बाघ से भीषण लड़ाई हुई थी। इस लड़ाई में ‘ब्रह्मा’ की मौत हो गई थी जबकि ‘छोटा मटका’ गंभीर रूप से घायल हो गया था। उसके पैर में बड़ा घाव हो गया था जिससे लगातार खून बह रहा था। पर्यटकों ने वन विभाग के अधिकारियों को इसकी जानकारी दी थी लेकिन उपचार के बजाय उसे प्रकृति के भरोसे छोड़ दिया गया था।