नवभारत से बातचीत में नगरसेवकों ने प्रशासक पर निकाला भड़ास (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Nagpur News: जो जनता के बीच रहता है, उसे चुनाव का डर नहीं रहता। 3.5 वर्ष गैप रहने के बाद भी सैकड़ों नगरसेवक जनता से जुड़ी समस्याओं का समाधान निकाल रहे हैं। जनता उनभर भरोसा भी कर रही है। यह अलग बात है कि मनपा अधिकारी और कर्मचारी नगरसेवकों की ‘औकात’ देखकर काम कर रहे हैं। बड़े नगरसेवकों का काम निकल जा रहा है, जबकि छोटे नगरसेवकों के कार्यों को अटकाया जा रहा है। जो काम जनता की जरूरतों को ध्यान में रखकर होना चाहिए था, वह नहीं हो रहे हैं। अधिकारी अपनी मनमानी कर रहे हैं। जनता की इच्छाओं को कुचल दिया गया है।
मनपा प्रशासक और अधिकारी ने समानता की भूमिका नहीं निभाई। नगरसेवकों की अनुपस्थिति का लाभ उन्हें उठाना चाहिए था,जिसमें वे चूक गए हैं। इससे सिटी के विकास पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है।निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि प्रशासक से न तो नगरसेवक खुश हैं और न ही सिटी की जनता। इस परिस्थिति को बदलने का समय आ गया है। चुनाव जल्द हों और जनता की सरकार मनपा में आशिन हो जाए यही सभी की ख्वाईश भी है।उक्त विचार ‘नवभारत संवाद’ कार्यक्रम में पूर्व नगरसेवकों ने व्यक्त की और जमकर भड़ास निकाला।
पूर्व नगर सेविका आभा पांडे ने कहा कि कार्यकाल के दौर में भी और कार्यकाल के बाद भी मैं जनता से जुड़ी हूं। उनके कार्यों को प्राथमिकता से करती रही हूं। उनकी आवाज बनकर अधिकारियों से बात करती रही हूं। इसलिए चुनाव चुनौती नहीं है। जो लोग जनता से कट गए हैं, उन्हें एक बार विचार करना होगा। चुनावी ‘मेंढक’ बनने वालों को निश्चित रूप से परेशानी होगी। 3 करोड़ से अधिक का कार्य क्षेत्र में करवाई हूं।अगर प्रशासक राज नहीं रहता तो संभव है और कार्य हो सकते थे।
पूर्व नगर सेवक सतीश होले ने कहा कि प्रशासक के कार्यकाल में चेहरा को महत्व दिया जा रहा है। जनता को हाशिए में डाल दिया गया है। जनता के हित वाले कार्य बगल में डाल दिए गए हैं और अधिकारी अपनी मनमर्जी से काम कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात अधिकारी और बाबू इतने बेलगाम हो गए हैं कि पूर्व नगरसेवकों की बात तक नहीं सुनते। इसलिए यह महूसस होता है कि जनता का राज मनपा में जल्द से जल्द आना ही चाहिए। आगामी चुनाव उन लोगों के लिए कोई चुनौती नहीं है, जो जनता के साथ हमेशा खड़े रहे।
पूर्व नगर सेवक जीतेंद्र धोडेस्वार ने कहा कि जनप्रतिनिधि होते हैं, तो काम में भेदभाव नहीं होता। लड़झगड़ कर ही सही काम निकला लिया जाता है। परंतु मनपा में प्रशासक राज ने कई क्षेत्रों को गड्ढे में डाल दिया है। उत्तर नागपुर के कई विकास कार्यों को रोक दिया गया है. बड़े लोगों का काम ‘दबाव’ में कर दिया जाता है, जबकि छोटे नगर सेवकों की पहुंच खत्म कर दी गई है। अधिकारी जनता के लिए काम नहीं कर पाएं। भेदभाव के कारण यह महसूस होता है कि जल्द से जल्द चुनाव हो और जनता की सरकार साकार हो।
पूर्व नगरसेवक जुल्फिकार भुट्टो ने कहा कि यह अच्छी बात है कि सिटी को भरपूर फंड मिला लेकिन मध्य नागपुर के लिए डीपी बना, जो अब तक अमल में नहीं है। 70 वर्ष पूर्व बने सीवर लाइन को बदला नहीं जा सका। परिणामस्वरूप बारिश में शहर डूब जाता है। मेयो में 5 वर्ष पूर्व पानी टंकी बनाने का निर्णय हुआ, जो अब तक कागजों में है। 24 बाई 7 पानी योजना कहां अटक गई, किसी को पता नहीं। लोग पैसे भर चुके हैं, न्याय नहीं मिल रहा। सब मुद्दों के साथ जनता के बीच था, हूं और रहेंगे। जनता की आवाज बनने वालों को आगामी चुनाव को लेकर कोई संकोच नहीं है।
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पूर्व स्थायी समिति अध्यक्ष पिंटू झलके ने कहा कि प्रशासक के शासन के पिछले साढ़े तीन साल हमारे लिए एक अवसर थे। जब मैं पार्षद था, तब नागरिकों से रोज़ मिलने की जो आदत थी, वह अब भी कायम है। फ़ोन पर और व्यक्तिगत रूप से लोगों से मिलना-जुलना अब भी जारी है। लेकिन जब पार्षद मिलकर बजट तैयार करते थे, वो अब नहीं रहा। ज़ोन के लिए बजट तो है। उसी से काम हुआ। अभी मेरे वार्ड से साउथ सीवेज ज़ोन का काम चल रहा है। यह सीवेज लाइन 20-25 किलोमीटर दूर है। मैं अब भी नागरिकों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहा हूं।
पूर्व स्थायी समिति अध्यक्ष अविनाश ठाकरे ने कहा कि 2017-22 के नए पार्षदों को पिछले साढ़े तीन साल ज़रूर परेशानी हुई। जो लोग पिछले पांच सालों में मौका मिलने के बावजूद काम नहीं कर पाए, उन्हें अगले चुनाव में परेशानी होगी। सत्ता में होने पर मनपा में स्थायी समिति अध्यक्ष होता है। वह प्रशासन को अपने बजट से होने वाली आय के स्रोत भी बताते हैं। अब वह वहां नहीं हैं, जिससे नए स्रोत खोजना अधिकारियों के लिए मुश्किल हो गया है। पार्षद नहीं होने से विकास योजनाएँ नहीं बन पा रही हैं। पिछले साढ़े तीन सालों में नागरिकों के संपर्क में रहने वाले हर व्यक्ति में ‘लीडर’ विकसित हुआ है।
पूर्व नगर सेवक सुनील हिरणवार ने कहा कि मेरा अनुभव यह रहा है कि अगर कोई पूर्व पार्षद प्रभावशाली न हो, तो अधिकारी काम नहीं करते। ऐसी स्थिति में चिढ़ होना स्वाभाविक है। मुख्यमंत्री का निवास मेरे वार्ड में है। नतीजतन हमारा काम प्रशासन ने करवाया और हुआ भी। लेकिन पूर्व पार्षद जो सरल स्वभाव के थे, उन्हें ज़रूर दिक्कतें हुईं।अधिकारी उन्हें टालते रहे। मैंने अपने वार्ड के धरमपेठ, शंकरनगर, रामदासपेठ में ज़मीन के प्लॉट फ्रीहोल्ड करवाए। मरियमनगर के झुग्गीवासियों को पट्टे भी बांटे। ये काम हमने तब भी किए जब कोई पार्षद नहीं था।
पूर्व महापौर नंदा जिचकर ने कहा कि जब मैं महापौर थी, तो पूरे शहर का दौरा किया और नागरिकों की समस्याओं का समाधान किया। चूंकि अब चुने हुए नेताओं की कोई ‘सभा’ नहीं है, इसलिए अधिकारियों पर कोई नियंत्रण नहीं है। अधिकारियों से लगातार संपर्क रहता था। अब ऐसा कोई अधिकारी नहीं है। इस वजह से काम में लापरवाही बरती जाती है। कुछ अधिकारी ईमानदार होते हैं। लेकिन कुछ अधिकारी सचमुच टोपी पहनते हैं। उम्मीद है चुनाव जल्दी होने चाहिए। कई कारणों से यह आगे बढ़ गया और नागरिकों को बहुत परेशानी हुई। नागरिक छोटी-छोटी समस्याएं लेकर हमारे पास आते हैं। सभी उनका समाधान करते हैं।