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नये परिसीमन और आरक्षण नियम को चुनाैती देने वालों को बड़ा झटका, हाई कोर्ट ने खारिज की याचिका

Maharashtra Nikay Chunav: बॉम्बे हाईकोर्ट नागपुर खंडपीठ ने ZP चुनाव आरक्षण रोटेशन नियम XII को चुनौती देने वाली सभी याचिकाएं खारिज कीं। नए नियम को वैध ठहराते हुए चुनावी प्रक्रिया को हरी झंडी दी।

  • By आकाश मसने
Updated On: Sep 20, 2025 | 08:28 AM

कॉन्सेप्ट फोटो (सोर्स: सोशल मीडिया)

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Zilla Parishad Elections Reservation News: महाराष्ट्र सरकार के ग्रामीण विकास विभाग और राज्य चुनाव आयोग द्वारा बनाए गए नये नियम XII को चुनौती देते हुए राष्ट्रपाल पाटिल, संजय वडतकर, ईशान सुखदेवे और रामप्रसाद गठे समेत कई अन्य किसानों और नागपुर, अमरावती और बुलढाणा के नागरिकों ने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ में याचिका दायर की।

इस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश अनिल किल्लोर और न्यायाधीश रजनीश व्यास ने सभी याचिकाएं खारिज कर दीं; साथ ही ZP चुनाव में आरक्षण रोटेशन के नये नियम को हरी झंडी दी।

अदालत ने महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति (सीटों के आरक्षण का तरीका और रोटेशन) नियम, 2025 के नियम XII को संवैधानिक रूप से वैध ठहराया है जिसमें आगामी आम चुनाव को आरक्षण रोटेशन के लिए ‘पहला चुनाव’ मानने का प्रावधान है।

इस फैसले से राज्य में आगामी जिला परिषद चुनावों के लिए परिसीमन और आरक्षण की प्रक्रिया का रास्ता साफ हो गया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधि। महेश धात्रक, राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता बीरेन्द्र सराफ ने पैरवी की।

रोटेशन प्रणाली में मनमाना बदलाव

याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि नया नियम XII आरक्षण की मौजूदा रोटेशन प्रणाली को बाधित करता है और यह पूरी तरह से मनमाना है। उनका कहना था कि 2025 के नियम 1996 के नियमों के समान ही हैं, बस इस नये नियम को जोड़ दिया गया है जिससे आरक्षण का चक्र टूट जाएगा।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस नियम के लागू होने से उनमें से कई लोग आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने के अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित हो जाएंगे। यह भी दलील दी गई कि यह नियम एक अधीनस्थ विधान (डेलिगेटेड लेजिस्लेशन) है और इसे मूल अधिनियम यानी महाराष्ट्र जिला परिषद और पंचायत समिति अधिनियम, 1961 के दायरे में होना चाहिए।

यह भी पढें:- चिंतन शिविर ने बढ़ाई NCP के मंत्रियों का चिंता, भड़के अजित पवार, बोले- काम करो वरना कुर्सी छोड़ो

पहली बार व्यापक परिसीमन

  • राज्य सरकार की पैरवी कर रहे महाधिवक्ता ने बताया कि राज्य सरकार 1961 के अधिनियम की धारा 12 को सही मायने में लागू करने के लिए पहली बार सभी मापदंडों को ध्यान में रखते हुए जिलों को चुनावी प्रभागों में विभाजित कर रही है।
  • 2022 में इस धारा में संशोधन किया गया था जिसके तहत यह अधिकार राज्य सरकार को दिया गया है। इस नये परिसीमन के कारण पुराने निर्वाचन क्षेत्रों की भौगोलिक सीमाएं बदल जाएंगी। कुछ क्षेत्र छोटे हो सकते हैं और कुछ बड़े हो सकते हैं।
  • कुछ ग्रामीण क्षेत्र महानगरपालिका में शामिल हो सकते हैं और इसके विपरीत भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि जब निर्वाचन क्षेत्र ही नये सिरे से बन रहे हैं तो यह कहना कि कौन सी सीट किस श्रेणी के लिए आरक्षित होगी, यह केवल एक अटकलबाजी है। याचिकाकर्ताओं की आशंकाएं काल्पनिक स्थिति पर आधारित हैं।

नियम संवैधानिक और वैध

अदालत ने फैसले में कहा कि नियम XII को 1961 के अधिनियम की धारा 12 के प्रावधानों को प्रभावी बनाने के लिए ही बनाया गया है। चूंकि निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को पहली बार नये सिरे से परिभाषित किया जा रहा है, इसलिए सीटों का आरक्षण भी बदलना स्वाभाविक है।

अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 243-O का उल्लेख किया जो चुनावी मामलों, विशेषकर परिसीमन से संबंधित कानूनों की वैधता को अदालत में चुनौती देने से रोकता है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायिक समीक्षा संविधान की एक मूल विशेषता है और यदि कोई आदेश स्पष्ट रूप से मनमाना और संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध हो तो अदालत हस्तक्षेप कर सकती है।

Bombay high court zilla parishad elections reservation rule

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Published On: Sep 20, 2025 | 08:26 AM

Topics:  

  • Bombay High Court
  • Maharashtra
  • Maharashtra Local Body Elections
  • Nagpur
  • Nagpur News

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