हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
High Court: नागपुर वर्ष 2019 में हुई घटना को लेकर अपने बेटे की संदिग्ध मौत की जांच सीआईडी से कराने और दोबारा पोस्टमार्टम के लिए शव को कब्र से बाहर निकालने की मांग करते हुए रामकृष्ण पारवेकर ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका पर लंबी दलीलों के बाद न्या. अनिल पानसरे और न्या. सिद्धेश्वर ठोंबरे ने मामले में लगभग 6 साल की अत्यधिक देरी और याचिकाकर्ता द्वारा मामले को आगे बढ़ाने में सक्रियता की कमी को देखते हुए याचिका खारिज कर दी।
याचिकाकर्ता ने अदालत में याचिका दायर कर अपने बेटे हेमंत की मौत पर संदेह जताया था। हेमंत 10 दिसंबर 2019 से लापता था और उसका शव 13 दिसंबर 2019 को कलमेश्वर के एलोरा बांध में मिला था। याचिका के अनुसार 10 दिसंबर को प्रतिवादी-4 ने हेमंत को अपनी बहू के साथ विवाहेतर संबंध के लिए डांटा था।
10 दिसंबर 2019 की शाम याचिकाकर्ता ने भी हेमंत को पढ़ाई न करने पर डांटा था जिसके बाद दोनों में झगड़ा हुआ और हेमंत गुस्से में घर से चला गया और फिर वापस नहीं लौटा था, जबकि 13 दिसंबर को एलोरा बांध के पास शव होने की खबर मिली। याचिकाकर्ता ने जहां सीआईडी को जांच सौंपने की मांग की वहीं पर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के डीन को मौत के कारण पर नई राय देने के लिए फोरेंसिक विशेषज्ञों का एक पैनल बनाने का निर्देश देने की मांग भी की।
इसी तरह से हेमंत के शव को काटोल के कब्रिस्तान से निकालकर गर्दन और हाइपोइड हड्डी की सटीक स्थिति की जांच के लिए दोबारा पोस्टमार्टम कराने की मांग की। अदालत को बताया गया कि पुलिस ने इस मामले में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 174 के तहत आकस्मिक मृत्यु का मामला दर्ज किया था।
काटोल के उपविभागीय अधिकारी ने 17 जून 2021 के अपने आदेश में पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर निष्कर्ष निकाला था कि हेमंत की मौत डूबने से हुई थी जिसे स्वीकार कर लिया गया था। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मौत 2019 में हुई थी और इतने लंबे समय के बाद शव को बाहर निकालने या मौत के कारण पर नई राय देने का निर्देश नहीं दिया जा सकता।
यह भी पढ़ें – Navratri: कोराडी सहित सभी मंदिरों में बढ़ी मुस्तैदी, गरबा कार्यक्रमों पर भी रहेगी पुलिस की नजर
अदालत ने यह भी पाया कि याचिकाकर्ता ने मामले को आगे बढ़ाने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किया और यह याचिका केवल इसलिए सूचीबद्ध हुई क्योंकि अदालत ने पुराने मामलों को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था। अदालत ने याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी है कि यदि वे पुलिस जांच से असंतुष्ट हैं तो दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत निचली अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।