हुआ हेप्लो-आयडेंटिकल ट्रांसप्लांट
Nagpur Hospital: सिर्फ 9 महीने की बालिका को जानलेवा एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया नामक ब्लड कैंसर का पता चला था। उपचार के लिए न्यु एरा मदर एंड चाइल्ड हॉस्पिटल, नागपुर में डॉक्टरों की टीम ने बेहद जटिल प्रक्रिया टी-सेल डिप्लेटेड हेप्लो-आयडेंटिकल स्टेम सेल ट्रांसप्लांट — सफलतापूर्वक पूरी की। इससे बच्ची को ब्लड कैंसर से मुक्ति मिली।
यह जटिल ऑपरेशन बाल रक्त विकार विशेषज्ञ और बोन मेरो ट्रांसप्लांट फिजिशियन डॉ. आतिश बकाने के नेतृत्व में किया गया। एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया, हाई-रिस्क ब्लड कैंसर का प्रकार है, जिसके उपचार के लिए बोन मेरो ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपाय होता है।
सिर्फ 7 किलोग्राम वजन वाली इस बालिका पर बोन मेरो ट्रांसप्लांट करना डॉक्टरों के लिए चुनौतीभरा कार्य था। ट्रांसप्लांट के लिए बालिका की बहन ने आवश्यक स्टेम सेल्स दान किए। इस प्रक्रिया में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रियंका पवार और बाल रोग अतिदक्षता विशेषज्ञ डॉ. आनंद भूतड़ा का विशेष योगदान रहा।
ट्रांसप्लांट के बाद बच्ची की रिकवरी के लिए बीएमटी (Bone Marrow Transplant) अतिदक्षता विभाग में विशेष देखभाल की गई।
अस्पताल के निदेशक डॉ. आनंद संचेती, डॉ. नीलेश अग्रवाल और डॉ. निधीश मिश्रा ने पूरी टीम को बधाई दी।
ये भी पढ़े: सोलापुर में ठाकरे गुट की शिवसेना में जमकर हंगामा, बैठक में संपर्कप्रमुख पर बरसे शिवसैनिक
डॉ. श्वेता भूतड़ा ने बताया कि नई तकनीक से उपचार अब कई बच्चों के लिए जीवनदायी साबित हो रहा है। वहीं डॉ. विश्राम बुचे, डॉ. रितु दरगन और संजय देशमुख ने कहा कि यह विदर्भ क्षेत्र का पहला सफल हेप्लो-आयडेंटिकल ट्रांसप्लांट है।
डॉ. आतिश बकाने ने कहा, की “एक वर्ष से कम उम्र के ब्लड कैंसर पीड़ित बच्चे का अस्थि-मज्जा प्रत्यारोपण बेहद जटिल और जोखिम भरा होता है। आधुनिक तकनीक और अनुभवी डॉक्टरों की टीम की बदौलत यह सफलता संभव हुई।”