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नागपुर. अभी आपली बस में लगी आग लगने की घटनाओं को यात्री भूले नहीं हैं कि सोमवार को गणेशपेठ बस स्टैंड पर एसटी बस में लगी आग ने सबको को डरा दिया. भले ही यह घटना छोटी थी लेकिन इसने सोचने पर मजबूर कर दिया है. लोगों का कहना है कि जिस तरह से बसों में आग की घटनाएं बढ़ रही हैं, वह चिंता का विषय है. इस तरह के मामलों में सख्ती बरतने की जरूरत है लेकिन संबंधित अधिकारी मौन साधे बैठे हुए हैं.
सूत्रों की मानें तो बस चाहे आपली हो या एसटी दोनों के ही प्रबंधन उन खटारा बसों का उपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं जो अपनी उम्र पूरी कर चुकी हैं. इन बसों को चलन से बाहर करने की जगह प्रबंधन मेंटेनेंस के नाम पर लोगों को गुमराह कर उनकी जान खतरे में डाल रहे हैं. इसके साथ ही आग की घटनाओं ने मेंटेनेंस पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं क्योंकि अगर बसों का मेंटेनेंस तरीके से किया जाता तो ये नौबत नहीं आती. इस मामले में सबसे अच्छी बात यह रही कि चिंगारी भड़कते ही आग पर काबू पा लिया गया जिससे बड़ा नुकसान होने से बच गया. संबंधित अधिकारी इस मामले में फिलहाल मौन साधे बैठे हैं जो चिंता का विषय है.
जिस तरह से गणेशपेठ स्टैंड पर बस में आग की चिंगारी भड़की, उसने कई सवालों को जन्म दे दिया है. सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या बसों की फेरी पर जाने से पहले सही तरीके से जांच होती है? अगर हां तो यह लापरवाही कैसे हुई. अगर नहीं तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? इस मामले में भी अभी किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है जिससे साबित होता है कि प्रबंधन ने मामले को हल्के में लेकर रफा-दफा करने की ठान ली है. अगर ऐसा नहीं होता तो मामले की जांच के आदेश दिए जाते, गलती कहां हुई उसका पता लगाकर उसे दुरस्त किया जाता.
शहर से ग्रामीण और विदर्भ के क्षेत्रों में सरकारी और निजी बसों से रोजाना 50,000 से ज्यादा लोग सफर करते हैं. इनमें 80 प्रतिशत यात्री सिर्फ एसटी बसों से ही सफर करना पसंद करते हैं. इसी कारण एसटी को पूरे प्रदेश की लाइफ लाइन भी बोला जाता है लेकिन प्रदेश में लालपरी के नाम से विख्यात एसटी की अधिकतर बसें अपनी उम्र पूरी कर चुकी हैं, इन्हें बदलने की जरूरत है. इसके बाद भी प्रबंधन की ओर से इस दिशा में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाने से यात्रियों के साथ कई कर्मचारियों में रोष है.