नरेंद्र जाधव (pic credit; social media)
Three Language Policy Controversy: महाराष्ट्र में स्कूलों में लागू की जाने वाली त्रिभाषा नीति को लेकर अब विवाद गहराता जा रहा है। राज्य की भाषा सलाहकार समिति ने महाप्रभु सरकार से मांग की है कि त्रिभाषा नीति के कार्यान्वयन के लिए गठित नरेंद्र जाधव समिति को तुरंत निरस्त किया जाए।
सलाहकार समिति की नागपुर में हुई बैठक में यह मुद्दा प्रमुख रहा। बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि जाधव समिति को भंग कर दिया जाए। इस 29 सदस्यीय सलाहकार समिति में शिक्षाविद और लेखक शामिल हैं और यह समिति मराठी भाषा से जुड़े मामलों पर सरकार को सिफारिशें करती है।
भाषा निकाय के प्रमुख और प्रसिद्ध लेखक लक्ष्मीकांत देशमुख ने कहा कि नरेंद्र जाधव अर्थशास्त्री हैं और उनका बहुत सम्मान किया जाता है, लेकिन वह न तो भाषा विशेषज्ञ हैं और न ही बाल मनोवैज्ञानिक। देशमुख का कहना है कि जाधव समिति का यह कहना व्यावहारिक नहीं है कि त्रिभाषा नीति को लागू करने के लिए हितधारकों से ऑनलाइन राय ली जाए।
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बता दें कि राज्य सरकार ने 16 अप्रैल को एक जीआर (सरकारी आदेश) जारी किया था, जिसमें मराठी और हिंदी माध्यम के स्कूलों में पहली से पांचवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाने का प्रस्ताव रखा गया था। इस फैसले का कई शिक्षाविदों और अभिभावकों ने जोरदार विरोध किया।
विरोध बढ़ने पर सरकार ने 17 जून को एक संशोधित जीआर जारी किया, लेकिन विवाद थमा नहीं। अब सलाहकार समिति ने साफ कर दिया है कि जाधव समिति की सिफारिशें भाषा और शिक्षा की दृष्टि से व्यावहारिक नहीं हैं।
मिली जानकारी के अनुसार, आने वाले दिनों में जाधव समिति को इस मुद्दे पर ठाकरे बंधुओं से भी मिलना है। माना जा रहा है कि राजनीतिक हस्तक्षेप से यह विवाद और गहरा सकता है।
त्रिभाषा नीति का मकसद छात्रों को मराठी, हिंदी और अंग्रेजी का ज्ञान देना है, लेकिन इसे लागू करने की प्रक्रिया को लेकर ही मतभेद बढ़ते जा रहे हैं। जहां एक ओर सरकार इसे शिक्षा का संतुलन मानती है, वहीं कई विशेषज्ञ इसे बच्चों पर अतिरिक्त बोझ बता रहे हैं। अब देखना होगा कि राज्य सरकार सलाहकार समिति की सिफारिशों को मानकर जाधव पैनल को निरस्त करती है या फिर विवादों के बावजूद त्रिभाषा नीति को लागू करने की दिशा में कदम आगे बढ़ाती है।