बॉम्बे उच्च न्यायालय (pic credit; social media)
Bombay High Court: शिक्षा की गुणवत्ता पर बड़ा सवाल खड़ा करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस जीआर पर गंभीर आपत्ति जताई है, जिसमें अनुत्तीर्ण छात्रों को बिना परीक्षा पास किए अगली कक्षा में प्रमोट करने का निर्णय लिया गया था। कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसे फैसले से “गुणवत्ता और अच्छी शिक्षा के उद्देश्य को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।”
22 सितंबर को हुई सुनवाई में सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय (एसपीपीयू) ने कोर्ट को बताया कि महाराष्ट्र के अधिकांश गैर-कृषि विश्वविद्यालयों ने भी इसी नीति को अपनाया है। इस पर हाईकोर्ट ने सभी विश्वविद्यालयों को पक्षकार बनाने का आदेश दिया और कहा कि वे अपने परिपत्र के आधार पर हलफनामा दाखिल करें।
राज्य सरकार से भी 17 अक्टूबर तक हलफनामा मांगा गया है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि शिक्षा का स्तर गिराने वाली किसी भी नीति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इसे भी पढ़ें- सांसद-विधायकों के खिलाफ लंबित केस पर हाईकोर्ट सख्त, सरकार से मांगा जवाब
एसपीपीयू के परिपत्र के अनुसार, प्रथम वर्ष की लंबित परीक्षाओं वाले छात्रों को द्वितीय वर्ष की कक्षाओं में, द्वितीय वर्ष की लंबित परीक्षाओं वाले छात्रों को तृतीय वर्ष में और इसी तरह आगे की कक्षाओं में अस्थायी प्रवेश की अनुमति दी गई थी। यानी फेल या परीक्षाएं न देने वाले छात्र भी अगले वर्ष की पढ़ाई कर रहे हैं।
हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि शिक्षा का स्तर पहले से ही गिर रहा है और यदि फेल छात्रों को ऐसे ही प्रमोट किया गया तो मेहनती और योग्य छात्रों का भविष्य भी प्रभावित होगा। अदालत ने कहा कि शिक्षा का मकसद केवल अगली कक्षा में प्रवेश देना नहीं बल्कि छात्रों को गुणवत्ता युक्त ज्ञान देना है।
यह मामला अब राज्य के सभी गैर-कृषि विश्वविद्यालयों और सरकार के सामने खुला है। 17 अक्टूबर को सरकार और विश्वविद्यालयों की तरफ से आने वाले हलफनामों के आधार पर कोर्ट आगे का फैसला लेगा।