मनपा-जेडपी चुनाव पर फिर ग्रहण (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Election Commission Challenge: महाराष्ट्र में बहुप्रतीक्षित महानगरपालिका (मनपा) और जिला परिषद (जेडपी) चुनावों पर एक बार फिर अनिश्चितता गहरा गई है। मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ द्वारा स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के चुनाव परिणामों को 21 दिसंबर तक स्थगित किए जाने के फैसले के बाद राज्य में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। इसी बीच ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ ने राज्य निर्वाचन आयोग को अदालत में चुनौती देने की चेतावनी दी है, जिससे इन चुनावों पर संकट और गहराता नजर आ रहा है।
राज्य निर्वाचन आयोग ने कई स्थानों पर चुनाव प्रक्रिया 20 दिसंबर तक रोक दी है, जिस पर राजनीतिक दलों ने तीखी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की हैं। नेताओं का आरोप है कि बार-बार स्थगन से प्रशासनिक अनिश्चितता और बढ़ रही है।
बुधवार को पत्रकारों से बातचीत में राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ के अध्यक्ष बबनराव तायवाडे ने कहा कि स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी वर्ग को पहले ही अपेक्षाकृत कम आरक्षण दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार यदि आरक्षण प्रतिशत 27% से अधिक होता है तो अपूर्णांक (fraction) को नज़रअंदाज़ किए जाने का प्रावधान है, परंतु कई स्थानों पर ओबीसी आरक्षण 27% के भीतर ही है और फिर भी उन्हें पूर्णांक का लाभ नहीं दिया जा रहा। उन्होंने कहा, “हर वर्ग के लिए अलग नियम नहीं हो सकता। हम इस विसंगति के खिलाफ गुरुवार को राज्य चुनाव आयोग के विरुद्ध हाई कोर्ट में याचिका दायर करेंगे।”
ओबीसी महासंघ का आरोप है कि आयोग ने अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और महिलाओं के आरक्षण में अपूर्णांक सीटों को ऊपर की ओर पूर्णांक मानने का नियम अपनाया है।जैसे: 4.3 सीट = 5 सीट, जबकि ओबीसी के लिए यह नीति लागू नहीं की गई है, जिससे कई जगहों पर उनकी एक सीट कम हो रही है। उनकी मांग है कि पूर्णांक संख्या को आधार मानकर ओबीसी आरक्षण पुनः निर्धारित किया जाए, परंतु आयोग द्वारा इसे न मानने के बाद अब कानूनी लड़ाई की तैयारी तेज हो गई है।
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ओबीसी आरक्षण पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट पहले ही स्थानीय निकाय चुनावों में कुल आरक्षण सीमा 50% रखने के निर्देश दे चुका है। राज्य के 17 जिलों में यह सीमा पार हो जाने के कारण वहां के चुनाव पहले ही स्थगित किए गए थे। अब नए विवादों के बाद राजनीतिक अनिश्चितता और बढ़ गई है।