एकनाथ शिंदे का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवाएंगे शंकराचार्य (सौजन्य-सोशल मीडिया)
Eknath Shinde : महाराष्ट्र के वर्तमान उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में गौमाता को राजमाता घोषित करने का साहसिक काम किया है। सनातन धर्म की रक्षा के लिए किए गए उनके इस काम का सम्मान होगा। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का 101 वां जन्मदिवस धूमधाम से मनाया जाएगा।
इस अवसर पर ज्योतिषपीठाधीश्वर वर्तमान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती चांदी के पन्नों से बनी पुस्तक पर एकनाथ शिंदे का नाम स्वर्णाक्षरों से लिखवाएंगे। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने शनिवार को यह घोषणा की। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती गौमाता को राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाने के लिए देश भर में अभियान चला रहे हैं। इसी सिलसिले में उन्होंने 33 करोड़ गौ-प्रतिष्ठा महायज्ञ भी जारी रखा है।
उन्होंने कहा कि गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित करने की उनकी मांग को मुख्यमंत्री रहते हुए एकनाथ शिंदे ने माना था। यह उनका ऐतिहासिक कार्य है। यह काम भारत सरकार को करना चाहिए। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने बताया कि भारत के राष्ट्रीय चिन्ह पर भी वृषभ की आकृति है। इसे देश ने स्वीकार किया गया है।
शंकराचार्य ने बताया कि देश के नए संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस सिंगोल को आगे लेकर चल रहे थे उसमें एक मुठिया बनी हुई है। उसके ऊपर चबूतरे जैसा है, जिसके ऊपर गौमाता की प्रतिमा है। इसी ने सबसे पहले संसद भवन में प्रवेश किया। इसका मतलब हुआ कि नए संसद भवन में भी सबसे पहले गौमाता ने ही प्रवेश किया।
शंकराचार्य ने कहा यह बेहद शुभ है, लेकिन दुख कि बात तब है जब इसी संसद भवन में गौमाता को काटने की अनुमति दी जाती है। गौ माता का मांस बेचा जाता है। यह सनातन धर्म के लिए बहुत ही दुख की बात है। यहां बोरीवली के कोरा केंद्र पर जारी अपने चातुर्मास्य महामहोत्सव में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि धर्म के नाम पर केवल धर्म होना चाहिए। दिखावा या पाखंड नहीं होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि धर्म को समझने से पहले विधर्म और अधर्म को पहचानना जरूरी है। उन्होंने कहा कि विधर्म आता है और धर्म को मार कर चला जाता है। इसलिए सनातन की रक्षा के लिए धर्म की रक्षा करने की जरूरत है। गौ माता को नष्ट होना सनातन धर्म का नष्ट होना है।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि उन्होंने बचपन में स्वर्णाक्षरों के बारे में सुना था, लेकिन ऐसी कहीं पुस्तक नहीं मिली। जब वह कहीं नहीं मिली तो उन्होंने चांदी के पन्ने बनवाए और उस पर स्वर्ण अक्षरों से सबसे पहले अपने गुरुजी शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का नाम लिखवाया। गौमाता को अधिकृत तौर पर राजमाता घोषित करने के एकनाथ शिंदे के ऐतिहासिक फैसले पर उनके सम्मान में अब वैसे ही पन्ने पर उनका भी नाम लिखा जाएगा।
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स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने दुख जताते हुए कहा कि जिस प्रदेश में बद्रिकाश्रम धाम है, जहां ज्योर्तिमठ है, वहां भी अब तक गाय को राजमाता का दर्जा नहीं दिया गया है। केवल महाराष्ट्र वह पावन भूमि है जहां आज गे राजमाता है। उन्होंने कहा कि जब तक पूरे देश में गाय को राष्ट्रमाता का दर्जा नहीं मिलेगा वे सनातनधर्मियों, गौभक्तों, गौसेवकों को लेकर अपना अभियान जारी रखेंगे।