सीजेआई भूषण गवई और नारायण राणे (सौजन्य-एएनआई)
मुंबई: 14 मई बुधवार को देश के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने के बाद सीजेआई भूषण गवई ने गुरुवार को अपने पहले ही फैसले में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता नारायण राणे को क्लीन बोल्ड कर दिया। सीजेआई भूषण गवई ने राणे द्वारा राजस्व मंत्री रहते लिए गए एक फैसले को निरस्त कर दिया।
नारायण राणे पर आरोप है कि उन्होंने अपने करीबी बिल्डर को पुणे जिले की वन विभाग की 30 एकड़ जमीन दी थी। सीजेआई ने इस जमीन को वन विभाग को वापस कर देने का आदेश देते हुए कहा कि देशभर में ऐसे सभी मामलों की जांच होनी चाहिए जहां नेता-अफसर-बिल्डर की मिलीभगत है।सीजेआई के इस पहले फैसले से बडबोले नेता राणे को बड़ा झटका लगा है।
अब महायुति में भी राजनीतिक बवाल शुरू होने से इनकार नहीं किया जा सकता। इस फैसले से राणे के साथ-साथ उनके बेटे व कैबिनेट मंत्री नितेश राणे के भविष्य पर संकट मंडराने लगा है। विपक्ष में खास तौर से उद्धव ठाकरे की पार्टी को राणे पर आक्रमण करने का एक बड़ा मुद्दा हाथ लग गया है।
मुख्य न्यायाधीश ने राजनेताओं और बिल्डरों के नेक्सस को लेकर भी कड़ी फटकार लगाई। उन्होंने कहा कि वन विभाग द्वारा पुणे में 30 एकड़ जमीन एक बिल्डर को देने का फैसला इस बात का ज्वलंत उदाहरण है कि किस तरह राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी निजी बिल्डरों के साथ मिलकर काम करते हैं। जुलाई से अगस्त 1998 के बीच महाराष्ट्र सरकार ने जिस तेज गति से भूमि उपयोग में परिवर्तन किया, उससे पता चलता है कि तत्कालीन राजस्व मंत्री इसमें शामिल थे।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह जांच करने का निर्देश भी दिया कि क्या किसी निजी पक्ष को गैर-वनीय गतिविधियों के लिए वन भूमि आवंटित की गई है। सीजेआई गवई ने निर्देश दिया कि गैर-वनीय उद्देश्यों के लिए दी गई आरक्षित भूमि को वन विभाग को वापस सौंप दिया जाए।