प्लास्टिक से प्राकृतिक फूलों की महक कम (सौजन्यः सोशल मीडया)
Gondia District: बाजार में कृत्रिम, निर्जीव, गंधहीन फूल मालाओं और तोरणों की उपलब्धता के कारण फूल उत्पादक किसान आर्थिक संकट में हैं। प्लास्टिक के अत्याधिक उपयोग से पर्यावरण को खतरा है। लेकिन प्लास्टिक की वस्तुओं की बिक्री पर प्रतिबंध का भी इन फूलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। जिससे बाजार में प्लास्टिक के फूल और सामान बड़ी मात्रा में आ रहे हैं। लेकिन फूलों की खेती करने वाले किसानों पर इसका असर पड़ रहा है। प्लास्टिक के फूलों के कारण प्राकृतिक फूलों की महक किताबों में खो जाने के कगार पर है।
इसलिए प्लास्टिक के सामान की बिक्री को लेकर सरकार ने सख्त रुख अपनाया है और फूलों की खेती करने वाले किसान संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग कर रहे हैं। हर साल सावन महीने से ही धार्मिक उत्सव शुरू हो जाते हैं। गणपति उत्सव, नवरात्रि, दशहरा, दिवाली और बाद में अन्य त्योहार के लिए खेतों में कड़ी मेहनत से तैयार किए गए गेंदा, सेवंती, गुलाब आदि फूलों की भारी मांग रहती है। आज सभी क्षेत्रों में आर्थिक स्थिति बदल रही है। जिसने किसानों के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। इसकी कोई गारंटी नहीं है कि यह बढ़ेगा और बिकेगा।
हाल ही के दिनों में बाजार में कृत्रिम और प्लास्टिक के फूलों का संकट अधिक देखा जा रहा है। कट फूलों से शुरू होकर अब यह गेंदा, आम के तोरण तक पहुंच गया है। जिससे फूल उत्पादक किसान बर्बाद हो रहे हैं। कृष्णजन्माष्टमी, पोला, गणेशोत्सव, दशहरा, उत्साह की पृष्ठभूमि में किसानों ने फूलों की खेती की। लेकिन बाजार में कृत्रिम और प्लास्टिक के फूलों की मांग बढ़ने के कारण फूल किसानों द्वारा उगाए गए प्राकृतिक फूलों की मांग इस साल कम हो रही है।
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कम कीमत और आकर्षक दिखने के कारण प्लास्टिक की फूलों की मालाओं की काफी मांग है। शहरी नागरिकों में तो फूलों का क्रेज देखने को मिल ही रहा है, लेकिन फूल उत्पादक किसानों के लिए यह क्रेज घातक साबित हो रहा है। यह मार्केट में पूरे साल मिलता है वहीं इसके खराब न होने जैसी स्थिति के कारण लोगों की पहली पसंद बनती जा रही है। लोग अपने घरों में ना केवल तीज-त्योहारों में बल्कि आम दिनों में भी सजाने के लिए प्लास्टिक फूलों का इस्तेमाल कर रहे हैं। लोग चौखटों से लेकर अपने बालकनी में खिलड़ियों में इसका उपयोग सजावट के तौर पर करने लगे हैं।