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गोंदिया. गोंदिया जिले की स्थापना 1 मई 1999 को हुई. उसके बाद एक एक करके विभिन्न शासकीय कार्यालय यहां शुरू किए जाते रहे लेकिन इसके बावजूद अनेक प्रमुख प्रशासनीक स्तर पर सुसज्ज व समुचित व्यवस्था का अभाव अब भी बना हुआ है.
इनमें काफी महत्वूपर्ण जिला स्तरीय कारागृह का जिक्र प्रथम चरण से ही होता रहा है लेकिन इसे घोर लापरवाही व अनदेखी ही मानी जाएगी कि अब तक इस दिशा में किसी तरह की सार्थक कार्रवाई नहीं हो सकी है.
उल्लेखनीय तो यह भी है कि यहां पालकमंत्रीयों का पदभार विभिन्न सरकारों में जितने राजनेताओं ने संभाला वे सभी अत्यंत प्रभावशाली जनप्रतिनिधि रहे हैं और तो और अनिल देशमुख जैसे गृहमंत्री भी यहां पालकमंत्री रहे हैं लेकिन कारागृह के निर्माण का मुद्दा कभी भी उभर कर सामने नहीं आया.
अन्य जिलों की स्थिति संभवत: अलग होगी लेकिन इस जिले में स्थिति एकदम विपरित है. हमेशा से विचाराधीन व अन्य मामलों के कैदियों को यहां से भंडारा जेल में रखा जाता रहा है. उन्हें न्यायालय में पेशी के लिए लाना एक रुटिन बना हुआ है और लगभग प्रतिदिन पुलिस वाहन में समुचित सुरक्षा व्यवस्था के साथ यहां कैदी लाए जाते हैं. उन्हें लाने ले- जाने की प्रक्रिया खतरों से ही भरी नहीं रहती बल्कि खर्च भी भरपुर होता है. अत्यंत विचारणीय यह भी है कि राज्य की अंतिम सीमा पर स्थित यह जिला प्रमुख नक्सलग्रस्त जिला है. फिर भी न जाने क्यों इतने वर्षों के बाद भी शासन आंखे मुंदे बैठा है ?
इस समय शिंदे – फडणवीस सरकार के तहत राज्य में 8 नए जेल बनाए जाने का मुद्दा सामने आया है. सरकार ने भी स्वीकार किया है कि राज्य की जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं. उनकी ओवर क्राउडिंग कम करने के लिए 8 नई जेल बनाने की चर्चा शुरू हो गई है. इनमें गोंदिया सहित बारामती (उप जेल), अहमदनगर (जिला जेल), पालघर, हिंगोली, नांदेड, अलीबाग व भुसावल में होगा जेलों का निर्माण.
उल्लेखनीय यह भी है कि और जिलों में तो जेल के निर्माण के लिए जगह की समस्या सामने आ सकती है लेकिन यहां पहले से स्थापित कारंजा पुलिस मुख्यालय के पास जगह उपलब्ध है. अब जिस तरह यह मुद्दा सामने आया है उससे ऐसा लगता तो है कि निश्चित रुप से सार्थक तौर पर कुछ अवश्य होगा.