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आज भी जंगल के भरोसे आदिवासी, सुविधाओं से वंचित दुर्गम क्षेत्र, बांस-महुआ-हिरडा…जीवनयापन के ये साधन

आमतौर पर देखा जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन जीने अथवा रोजगार समेत अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिये बाहरी दुनिया से रूबरू होना पड़ता है। लेकिन गड़चिरोली जिले में एक समुदाय आज भी जंगल के भरोसे है।

  • By प्रिया जैस
Updated On: Aug 27, 2025 | 11:43 AM

गड़चिरोली आदिवासी (सौजन्य-नवभारत)

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Gadchiroli News:  गड़चिरोली जिले में एक समुदाय ऐसा भी है, जिनके लिए उनका गांव ही उनकी दुनिया है। विशेषत: उनका जीवन जंगल से मिलने वाले वनोपज के आधार पर बीत जाता है। पिछले अनेक वर्षों से आदिवासी समुदाय के लोग वनों में नैसर्गिक रूप से उत्पादित महुआ फूल, हिरड़ा, बेहड़ा, चारोली, बांस और तेंदूपत्ता समेत अन्य वनोपज का संकलन कर रहे है। वनोपज संकलन कर बेचने के बाद प्राप्त वित्तीय आय से समाज के अधिकत्तर लोग अपना जीवनयापन कर रहे है।

दुर्गम क्षेत्र सुविधाओं से वंचित

राज्य के आखिरी छोर पर बसे गड़चिरोली जिले में आदिवासी समुदाय बड़ी संख्या में है। यह समुदाय दुर्गम और अतिदुर्गम परिसर में बसा है। इन क्षेत्र में अब तक आवश्यकता अनुसार बुनियादी सुविधाएं नहीं पहुंच पायी है। जिसके कारण क्षेत्र के लोग आज भी सुविधाओं के लिए तरसते दिखाई दे रहे है। दुर्गम क्षेत्र के अनेक गांवों तक पहुंचने के लिए अब तक पक्की सड़कें नहीं बन पायी है।

वहीं नदी, नालों पर पुलियाओं का निर्माण भी नहीं किया गया है। ऐसे विपरित परिस्थितियों में भी इस समुदाय के लोग अपना जीवनयापन करते नजर आ रहे है। वर्तमान स्थिति में आदिवासी समुदाय में सुशिक्षित पीढ़ी तैयार हो रही है। लेकिन अब भी कुछ लोग ऐसे है, जिनका संपूर्ण जीवन केवल जंगल से मिलने वाली वनोपज के आधार पर ही बीत रहा है।

जंगल में बितता है पूरा दिन

जिले के जंगल में बांस, तेंदू फल, महुआ, हिरडा समेत विभिन्न तरह के वनोपज बड़े पैमाने पर है। जिनका संकलन कर इस समुदाय के लोग अपना जीवनयापन करते है। बताया जा रहा है कि इस समाज के अधिकत्तर लोग सुबह ही अपने घर से जंगल के लिए रवाना होते है।

दिनभर वनोपज संकलन करने के बाद शाम को घर वापस लौटते है। परिसर के बड़े गांव में साप्ताहिक बाजार आयोजित होता है, तब ही यह लोग अपने गांव से बाहर निकलते है। आदिवासी समाज के लोगों का प्रमुख व्यवसाय खेती होकर खेती करने के साथ ही वनोपज संकलन करने की ओर इनका अधिकर ध्यान लगा रहता है।

वनोपज खरीदी केंद्र शुरू करने की आवश्यकता

अधिकत्तर आदिवासी समाज के लोगों का जीवन वनोपज पर निर्भर होने के कारण वह वनोपज का संकलन कर अपना जीवनयापन कर रहे है। लेकिन प्रशासन द्वारा वनोपज खरीदने संदर्भ में कोई प्रक्रिया नहीं चलाए जाने के कारण आदिवासियों द्वारा संकलन किया गया वनोपज निजी व्यापारियों को अल्प दाम में बेचना पड़ रहा है। जिसमें उनकी वित्तीय लूट हो रही है।

यह भी पढ़ें – 2 महीने में 5 मौतें, गड़चिरोली में बाढ़ ने मचाई तबाही, भामरागढ़ में भारी बारिश से सबसे ज्यादा नुकसान

पिछले अनेक वर्षों से वनविभाग द्वारा वनोपज खरीदने संदर्भ में प्रक्रिया शुरू करने की मांग स्थानीय नागरिकों द्वारा की जा रही है। किंतु अब तक जिले में कहीं पर भी खरीदी केंद्र शुरू नहीं किये जाने के कारण आदिवासियों को वनोपज अल्प दाम में निजी व्यापारियों को बेचने की नौबत आ पड़ी है। जिससे वनविभाग इस ओर गंभीरता से ध्यान देकर वनोपज खरीदने के लिए केंद्र शुरू करें, ऐसी मांग नागरिकों द्वारा की जा रही है।

Tribals dependent on forests remote areas deprived facilities means of livelihood

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Published On: Aug 27, 2025 | 11:43 AM

Topics:  

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