माना जनजाति के खिलाफ आपत्तियां असंवैधानिक (सौजन्यः सोशल मीडिया)
Gadchiroli District: बुधवार को गडचिरोली में आयोजित आदिवासी मोर्चे में प्रमुख मांगों में माना जनजाति को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और विशेष पिछड़ा वर्ग (VJNT) की सूची में शामिल करने की मांग की गई। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए माना समाज ने कहा है कि, यह मांग कानूनी रूप से गलत, असंवैधानिक और माना जनजाति के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाली है।
माना समाज के प्रतिनिधियों ने आज आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि, स्वतंत्रता-पूर्व काल से ही माना जनजाति को आदिवासी के रूप में दर्ज किया गया है। वर्ष 1869 में मेजर लुईस मीत द्वारा तैयार चंद्रपुर जिले के “फर्स्ट सेटलमेंट रिपोर्ट” में माना जनजाति की जनसंख्या 29,175 दर्ज की गई थी। इसके बाद 1956 के अनुसूचित जाति-जनजाति आदेश अधिनियम में तत्कालीन मध्यप्रदेश राज्य की सूची में माना जनजाति को क्रमांक 12 पर शामिल किया गया।
संसद ने 1976 में अनुसूचित जाति-जनजाति (संशोधित) अधिनियम क्रमांक 108/1976 के तहत क्षेत्रीय प्रतिबंध हटाते हुए महाराष्ट्र सरकार की अनुसूचित जनजातियों की सूची में माना जनजाति को क्रमांक 18 पर दर्ज किया। महाराष्ट्र शासन के 19 जून 1977 के पत्र में भी माना जनजाति को अनुसूचित जनजाति के रूप में स्पष्ट किया गया है।
मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने 11 जून 2003 को और सर्वोच्च न्यायालय ने 8 मार्च 2006 को दिए अपने आदेशों में माना जनजाति को अनुसूचित जनजाति माना है। इन निर्णयों के आधार पर महाराष्ट्र सरकार के आदिवासी विकास विभाग ने 6 और 7 अक्टूबर 2006 के परिपत्र में माना जनजाति को सभी अधिकार और सुविधाएं प्रदान करने के आदेश जारी किए।
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इसलिए माना समाज का कहना है कि, माना जनजाति को अन्य पिछड़ा वर्ग या विशेष पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की मांग न केवल गैरकानूनी है, बल्कि यह उनके संवैधानिक अधिकारों को छीनने का प्रयास है। माना आदिम जनजाति मंडल ने शासन से ऐसी भ्रामक मांगों पर गंभीरता से ध्यान देकर कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है। संवाददाता सम्मेलन में माना आदिम जनजाति मंडल के जिलाध्यक्ष विश्वनाथ राजनहीरे, वामनराव सावसागडे, शत्रुघ्न चौधरी, धनराज नन्नावरे, सुधीर चौधरी, गोविंदराव सावसागडे और गोपाल मगरे उपस्थित थे।