गड़चिरोली जिले के एक गांव का दृश्य (फोटो नवभारत)
Gadchiroli District Foundation Day: विकास में छोटे जिलों की संकल्पना प्रभावशाली मानी गई है। जिसके मद्देनजर क्षेत्र के विकास की मांग को लेकर तत्कालीन सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ ही राजनीतिक दलों के नेताओं ने गड़चिरोली जिला निर्मिती की मांग को लेकर संघर्ष शुरू किया। अंतत: 26 अगस्त 1982 में चंद्रपुर जिले से गड़चिरोली व सिरोंचा 2 महत्वपूर्ण तहसीलों को विभक्त कर स्वतंत्र गड़चिरोली जिला निर्माण किया गया।
आज स्वतंत्र गड़चिरोली जिला बनने के 43 साल पूर्ण हो रहे है। इन 43 सालों में आज की आधुनिकता के तहत जिले के सुजल क्षेत्रों में कुछ परिवर्तन देखने तो मिल रहे है। लेकिन अधिकत्तर झाड़ियां, जंगल, नदियां, पहाड़ी आदि से घिरा दुर्गम क्षेत्र आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए भी तरसता नजर आ रहा है। जिससे यह क्षेत्र जिला निर्मिती के 43 वर्ष पश्चात भी विकास की रोशनी के लिए तरसते नजर आ रहे है।
सड़कें, पुलिया, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जैसी सुविधाएं भी पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंची है। जिसके चलते दुर्गम क्षेत्र के लोग आज भी यातनाओं से भरा जीवन जी रहे है। जिले के विकास में लोह प्रोजेक्ट अहम कड़ी साबित हो सकते है। इस प्रकल्प के माध्यम से विकास की उम्मीद जग रही है।
जिले में सुरजागड़, कोनसरी आदि लोह प्रकल्प का कार्य तेजी पर है। साथ ही रेलवे का कार्य शुरू है। जिससे विकास की उम्मीद तो जगी है। लेकिन जिला निर्माण के 44 वर्षों में गड़चिरोली जिले के दुर्गम क्षेत्र के लोगों का दयनीय जीवन कायम है। यहां बुनियादी सुविधाओं का निर्माण बेहत जरूरी है।
जिले में जिला मुख्यालय तथा आसपास की कुछ तहसीलों को छोड़े तो जिले का अधिकत्तर क्षेत्र दुर्गम अंचल में बसा हुआ है। जिले का समुचा दक्षिण क्षेत्र यानी अहेरी उपविभाग दुर्गम, आदिवासी बहुल तथा नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। इस उपविभाग में सुविधाओं की दरकार कायम है। यहां के अनेक गांवों तक पक्की सड़कें नहीं पहुंची है, कच्ची सड़कों से नागरिक आवागमन करते है।
क्षेत्र में नदी, नालों की भरमार है, लेकिन इन नदियों पर पुलिया का अभाव है। ऐसे में दुर्गम क्षेत्र में जीवनावश्यक मानी जाने वाली स्वास्थ्य सेवाएं भी नहीं पहुंची है। जिसके चलते दुर्गम क्षेत्र के नागरिकों को दयनीय जीवन जीना पड़ रहा है। यहां सड़कों का अभाव होने के कारण मरीजों को एम्बुलेंस तक नहीं मिलती है। ऐसे में दुर्गम क्षेत्र के लोग खटिया को ही एम्बुलेंस बनाते है।
विगत दिनों दुर्गम क्षेत्र के एक मरीज को खटिया पर लादकर अस्पताल पहुंचाना पड़ा। जिससे दुर्गम क्षेत्र में खटिया ही एम्बुलेंस बनने की वास्तविकता नहीं बदली है। इन दिनों जिले में मलेरिया तथा डेंगू का प्रकोप बढा है। जिसके चलते करीब 5 से अधिक नागरिकों की मौते होने की जानकारी है।
जिले में बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। लेकिन यह खेती मौसम पर निर्भर करती है। जिले में खलखल बहती बारहमासी नदियां है। जिले की सीमाओं पर वैनगंगा, प्राणहिता, इंद्रावती व राज्य की सबसे बड़ी गोदावरी नदी बहती है। वहीं जिले के अंतर्गत दर्जनों नदियां व अनेक नाले बहते है। लेकिन इन नदी, नालों पर बांध नहीं होने के कारण बरसात में आने वाला पानी नदियों से बह जाता है।
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गड़चिरोली में नदी, नालों का भंडार है, लेकिन सिंचाई सुविधा के अभाव से यहां के खेत-खलियान प्यासे नजर आ रहे है। जिले में चिचडोह बैरेज निर्माण हुआ है। इसके अलावा कन्नमवार जलाशय है। यह सिंचाई सुविधा जिले के कुछ किसानों को लाभ दे रहे है। जिले में अनेक किसान खेतां में बोरवेल, सिंचाई कुएं के माध्यम से सिंचाई का लाभ ले रहे है। जिससे सिंचाई क्षेत्र बढ़ा है।
लेकिन जिले में बड़ा सिंचाई प्रकल्प निर्माण होना जरूरी है। इसके विपरीत तेलंगाना सरकार द्वारा सिरोंचा तहसील के सीमा पर गोदावरी नदी पर बनाएं गए मेडिगट्टा प्रकल्प के कारण सिरोंचा तहसील के किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।