सीएम फडणवीस
मुंबई: आषाढी एकादशी के शुभ मुहूर्त पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रविवार को अपने विशेष पॉडकास्ट ‘महाराष्ट्रधर्म’ का शुभारंभ किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र का गौरवशाली इतिहास रहा है और साथ ही यह एक जिम्मेदारी भी है। हम ज्ञानेश्वर, शिवाजी महाराज, क्रांतीज्योती सावित्रीबाई फुले और भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के वंशज न सही लेकिन उनके विचारों की विरासत के वाहक अवश्य हैं। उनके ज्ञान, त्याग और धैर्य ने इस राज्य को गढ़ा है। उसे संजोना, बढ़ाना और लेकर आगे बढ़ना हमारा कर्तव्य है।
मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र धर्म स्मरण रंजन नहीं है। यह हमारा नैतिक मार्गदर्शक है। हम कौन हैं, यह समझना और यह तय करना कि हम क्या बनाना चाहते हैं, यही महाराष्ट्र धर्म है। ‘महाराष्ट्र धर्म’ विशेष पॉडकास्ट श्रृंखला की शुरुआत में जाने-माने विचारक, संत साहित्य के विद्वान और जगद्गुरु तुकाराम महाराज के वंशज डॉ. सदानंद मोरे ने मुख्यमंत्री का साक्षात्कार लिया।
महाराष्ट्र क्यों है?
मुख्यमंत्री ने 2014 से 2019 के बीच के अपने पहले कार्यकाल में ‘मी मुख्यमंत्री बोलतोय’ नामक टीवी कार्यक्रम के माध्यम से जनसंवाद किया था। रविवार को उन्होंने तेजी से लोकप्रिय हो रहे पॉडकास्ट माध्यम से लोगों से संवाद साधा। इस पॉडकास्ट श्रृंखला का पहला एपिसोड ‘महाराष्ट्रधर्म आधार और निर्माण’ विषय पर आधारित था।
इस श्रृंखला में मुख्यमंत्री ने रामायण से लेकर महाभारत, भगवान गौतम बुद्ध के संदेशों से लेकर संत परंपरा तक, महाराष्ट्र की आध्यात्मिक नींव और निर्माण पर गहन चर्चा की। यह पॉडकास्ट मुख्यमंत्री के सोशल मीडिया माध्यमों पर उपलब्ध कराया गया है। मुख्यमंत्री ने इस पहले पॉडकास्ट को सराहने वाले सभी श्रोताओं का आभार व्यक्त किया और कहा कि आगे की कड़ियों में महाराष्ट्र को देवभूमि, संत भूमि, वीर भूमि के रूप में देखने के संदर्भ में गहराई से विचार किया जाएगा और यह खोज की जाएगी कि ‘महाराष्ट्र’, महाराष्ट्र क्यों है?
महाराष्ट्रधर्म एक जीवित मूल्य संहिता है
मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र धर्म कोई धर्म नहीं, बल्कि एक जीवंत मूल्य-संहिता है। यह विवेक से सोचने, सेवा-भाव से व्यवहार करने और शौर्य से खड़े रहने की प्रेरणा देता है। ज्ञानेश्वर की ओवियों से लेकर शिवराय की तलवार तक, फुले के साहस से लेकर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की दूरदृष्टि तक यह विचारों की श्रृंखला कभी टूटी नहीं, बल्कि निरंतर आगे बढ़ती रही है।
महाराष्ट्र का प्रारंभ देवों के पदचिन्हों से
मुख्यमंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र का उल्लेख रामायण और महाभारत में मिलता है। विदर्भ, पंचवटी, कौंडिण्यपुर जैसे स्थानों से जुड़ी अनेक कथाएं हमारी ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा हैं। भगवान बुद्ध की शिक्षाएं अजंता की गुफाओं में आज भी जीवित हैं। महाराष्ट्र उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ने वाला आध्यात्मिक सेतु रहा है।
वारी – चलती-फिरती संस्कृति
वारी परंपरा को सामाजिक समता का प्रवाह बताते हुए उन्होंने संतों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि संत ज्ञानेश्वर, नामदेव, मुक्ताई, चोखोबा, एकनाथ, सोयराबाई जैसे संत केवल उपदेशक नहीं थे, बल्कि भक्ति धारा के लोकतांत्रिक वाहक थे। उन्होंने बताया कि इस वर्ष कुछ वारकरी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करते हुए वारी में शामिल हुए हैं। यह पंढरपुर की परंपरा का आधुनिक विस्तार है।
मराठा तलवार यमुना तक पहुंची
मुख्यमंत्री ने छत्रपती शिवाजी महाराज, छत्रपती संभाजी महाराज, बाजीराव पेशवा, महादजी शिंदे जैसे योद्धाओं का उल्लेख करते हुए बताया कि उन्होंने केवल विजय नहीं पाई, बल्कि एक सांस्कृतिक राष्ट्र का निर्माण किया। मराठों ने दिल्ली तक सत्ता स्थापित की और अपनी शौर्य से पूरे भारत में प्रभाव बनाया।
धैर्यवान नारिशक्ति की परंपरा
राजाराम महाराज की पत्नी ताराबाई, सेनापती उमाबाई दाभाडे, पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होलकर जैसी वीरांगनाओं का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र की नारिशक्ति ने संकट के समय में तलवार भी उठाई और संस्कृति की रक्षा भी की।
मूल्यनिष्ठ सामाजिक क्रांति
महात्मा फुले, सावित्रीबाई फुले, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, पंडिता रमाबाई, गोपाल गणेश आगरकर, संत गाडगेबाबा, कर्मवीर भाऊराव पाटील, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज जैसे महापुरुषों ने धर्म, समाज और शासन को नया नैतिक अधिष्ठान दिया। मुख्यमंत्री ने बताया कि अमरावती के पास स्थित रिद्धपूर, जहां चक्रधर स्वामी के गुरु गोविंद प्रभु का स्थान है। वहां महाराष्ट्र सरकार ने मराठी भाषा विश्वविद्यालय की स्थापना की है और हाल ही में इसका कार्य प्रारंभ हुआ है।