चंद्रपुर में महाकाली यात्रा के अंतिम दिन माता के दर्शन करने बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे (फोटो नवभारत)
चंद्रपुर: पूरे विदर्भ में आदिशक्ति के रूप में प्रसिद्ध देवी महाकाली की ऐतिहासिक यात्रा शनिवार यानी 12 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा की मुख्य पूजा से संपन्न हुई। चैत्र पूर्णिमा यह यात्रा का मुख्य दिन होने से चंद्रपुर में देवी के दर्शन के लिए बडी संख्या में हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी। मंदिर परिसर श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ था। पैर रखने तक की जगह नहीं थी। उमस भरी गरमी में भी लोगों की अटूट आस्था का नजारा देखते ही बन पा रहा था।
तडके मंदिर के मुख्य पुरोहित द्वारा मुख्य पूजा व महाप्रसाद का भोग लगाया गया। इसके पश्चात सभी दर्शनार्थियों द्वारा पूजा विधि का सिलसिला चलता रहा। दोपहर 1 बजे मुख्य आरती कर घट को विसर्जित किया गया। इसके साथ ही देवी की यात्रा समाप्त हो गयी। वैसे देर शाम तक भाविकों का देवी महाकाली के दर्शन व पूजा का दौर चलता रहा। कतार में लगे श्रद्धालुओं ने मंदिर में देवी की प्रतिमा के दर्शन लिए और पूजा की।
हर वर्ष की तरह आज चैत्र पूर्णिमा को पूजा सामग्री लिए श्रद्धालुओं कतारबद्ध होकर अपनी बारी की प्रतिक्षा में लीन थे। बारी-बारी से एक-एक कर देवी का मुख दर्शन और पूजा की प्रक्रिया पूरी करायी गई। पूरा मंदिर परिसर श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ था। पूजा के लिए श्रद्धालुओं की भीड को देखते हुए पुलिस ने परिसर में पुख्ता बंदोबस्त कर रखा था। हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने झरपट नदी में पवित्र स्नान कर देवी के दर्शन किए।
नांदेड, मराठवाड़ा व आंध्रप्रदेश से आए श्रद्धालुओं ने मंदिर के पास से बहने वाले झरपट नदी में डूबकी लगाकर चैत्र पूर्णिमा का पवित्र स्नान किया। घाट पर किसी तरह की अनुचित घटना को रोकने के लिए गोताखोरों को तैनात रखा था। स्वयंसेवी संस्था एवं सामाजिक संगठनों की ओर से पुरी, भाजी, मसाला भात का वितरण किया जा रहा था। इसके अलावा दुरदराज से आए श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर परिसर में खुली जगह पर भोजन बनाते हुए नजर आए।
चंद्रपुर जिले के पालकमंत्री डाॅ. अशोक उईके ने सपरिवार आज देवी महाकाली मंदिर पहुंचकर मुख्य पूजा में सम्मिलित हुए और पूजा की। साथ ही उन्होंने मंदिर परिसर के यात्रा इंतजामों का जायजा लिया।
पालकमंत्री अशोक उईके ने परिवार के साथ किए देवी महाकाली के दर्शन पूजा (फोटो नवभारत)
देवी महाकाली की ऐतिहासिक यात्रा में सहभागी होने मराठवाड़ा से आने वाले श्रद्धालुओं की बरसों से शहर के मुख्य प्रवेशद्वार जटपुरा गेट व अंचलेश्वर गेट की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। दोनों गेटों की पूजा किए बिना कोई भी बाहरी श्रध्दालु मंदिरों की ओर कूच नही करता है।
महाराष्ट्र की अन्य खबरें पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें
इस वर्ष भी बडी संख्या में यात्रा में शामिल होने पहुचे यात्री इस परंपरा को पूरे विधिविधान से पालन करते हुए नजर आ रहे थे। मंदिर की ओर कूच करने से पहले श्रद्धालुओं के जत्थे ने इन गेट पर नारियल फोड़ कर एवं सिंदूर फूल से पूजा की। श्रद्धालुओं की असीम श्रद्धा को देखते हुए दोनों की गेट के पास नारियल, फूल और सिंदूर बेचनेवालों की दुकाने सजी हुई थी।
चैत्र महीने में भरने वाले महाकाली यात्रा में घोडे पर सवार होकर चंद्रपुर पहुचने की यमुनामाई की परम्परा 1860 से आज भी उनके वंशज बरकरार रखे हुए है। यमुनामाई की यात्रा नांदेड़ जिले के शेलगांव से चंद्रपुर के महाकाली मंदिर तक होती है। पिछले 164 वर्षों से यमुनाबाई का पोहा हर वर्ष जत्रा में पहुंचता है। जो कि इस जत्रा का मुख्य आकर्षण होता है।