भद्रावती नगर पालिका चुनाव (सौजन्य-नवभारत)
Maharashtra Local Body Elections: भद्रावती की राजनीति में इन दिनों नए समीकरण बनते-बिगड़ते नजर आ रहे हैं। राजनीति को यूं ही असंभव को संभव करने वाली कला नहीं कहा जाता। यहां दोस्त भी पलभर में दुश्मन बन जाते हैं और दुश्मन भी दोस्त बनकर एक ही मंच पर खड़े दिखाई देते हैं। भद्रावती की जनता को भी इस बार नगरपालिका चुनाव में यही सियासी तस्वीर देखने मिल सकती है।
शहर की राजनीति में जो चेहरे कभी आमने-सामने खड़े होकर एक-दूसरे के खिलाफ आवाज बुलंद करते थे, वही आज एक ही मंच पर खड़े होकर बीजेपी की ताकत बढ़ाने का दावा कर रहे हैं। पुराने प्रतिद्वंद्वी अब सहयोगी बने दिखाई दे रहे हैं। यह तस्वीर भद्रावती की जनता को गणेश विसर्जन के समय शहर के मुख्य मार्ग से लगे हुए पार्टी के मंच पर देखने को मिली।\
सवाल यही उठता है कि क्या इस नए राजनीतिक गठजोड़ से भारतीय जनता पार्टी को लाभ मिलेगा? और क्या जनता इन नेताओं के नए रिश्तों को स्वीकार करेगी? पिछले कुछ वर्षों में भद्रावती नगर पालिका की राजनीति ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। कांग्रेस की पकड़ लगातार कमजोर होती चली गई, वहीं शिवसेना का प्रभाव भी धीरे-धीरे कम हुआ। इस दौरान बीजेपी ने संगठन विस्तार, स्थानीय नेताओं को जोड़ने और नई रणनीतियों के जरिए अपना आधार मजबूत किया।
अब जबकि कई पुराने प्रतिद्वंद्वी नेता भाजपा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े दिखाई दे रहे हैं, इससे शहर की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। बीजेपी का मकसद इस बार नगर पालिका पर अपना परचम लहराना है। पार्टी के नेता यह भलीभांति समझते हैं कि केवल परंपरागत वोट बैंक के भरोसे नगर पालिका चुनाव जीतना आसान नहीं होगा। इसलिए उन्होंने हर गुट, हर पृष्ठभूमि और हर प्रभावशाली नेता को अपने साथ जोड़ने की नीति अपनाई है। नतीजा यह है कि जो कभी कट्टर विरोधी हुआ करते थे, वे अब कमल के निशान के साथ एकजुट हो गए हैं।
भद्रावती शहर की जनता नए समीकरणों को परखने का प्रयास कर रही है। जनता सबकुछ देख रही है। जिन नेताओं ने पहले एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए, वे आज मंच पर गले मिलते हैं तो मतदाताओं के मन में कई सवाल खड़े होते हैं। क्या ये दोस्ती केवल चुनावी है या वास्तव में जनता की भलाई के लिए? यही सवाल चुनावी नतीजों का रुख तय करेंगे।
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दूसरी ओर, कांग्रेस और शिवसेना जैसे दल पूरी तरह से बाहर नहीं हुए हैं। भले ही उनकी स्थिति कमजोर दिखाई दे, लेकिन यदि बीजेपी के भीतर गुटबाजी या असंतोष उभरता है तो इसका सीधा फायदा विरोधियों को मिल सकता है। राजनीति में अक्सर ऐसा हुआ है कि जिस पार्टी को अजेय माना गया, वही अंदरूनी कलह के कारण हार का सामना कर बैठी।
भद्रावती नगर पालिका का आगामी चुनाव इस लिहाज से बेहद रोचक होने वाला है। जनता को जहां कुछ पुराने चेहरे नए रिश्तों के साथ देखने मिलेंगे, वहीं कुछ नए चेहरे भी मैदान में उतरकर राजनीति में ताजगी ला सकते हैं। सवाल यही है कि क्या बीजेपी इन सभी पुराने दुश्मनों को दोस्त बनाकर वाकई नगर पालिका पर कब्जा जमाएगी, या फिर जनता इस बार किसी और दल को मौका देगी?एक बात तय है कि भद्रावती की राजनीति में इस बार नए समीकरण बन रहे हैं और जनता को चुनावी अखाड़े में एकदम अलग तस्वीर देखने को मिलेगी।