
सोयाबीन की फसल (सोर्स: सोशल मीडिया)
Chandrapur Wild Animal Crop Damage: चंद्रपुर जिले में खेती करना अब किसी जोखिम भरे खेल से कम नहीं रह गया है। जिले के किसान इस समय एक साथ कई मोर्चों पर जंग लड़ रहे हैं। दिन भर खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद, अब कड़ाके की ठंड में उन्हें अपनी रातों की नींद त्यागकर फसलों की रखवाली करनी पड़ रही है। रबी का सीजन शुरू होते ही जंगली सूअरों और अन्य वन्यजीवों के बढ़ते हमलों ने किसानों की चिंता को सातवें आसमान पर पहुँचा दिया है।
इस वर्ष जिले के किसानों के लिए कुदरत का मिजाज काफी सख्त रहा है। खरीफ सीजन के दौरान भारी बेमौसम बारिश ने सोयाबीन की फसल को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। फलियां काली पड़कर सड़ गईं, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। अब रबी सीजन में गेहूं, चना, कपास और ज्वार की फसलें लहलहा रही हैं, लेकिन इन पर जंगली सूअरों के झुंडों की टेढ़ी नजर है। किसानों का कहना है कि अगर एक रात भी पहरा चूका, तो 25-30 सूअरों का झुंड घंटों में कई एकड़ फसल को तहस-नहस कर देता है।
चंद्रपुर जिला अपने बाघों के लिए जाना जाता है, लेकिन यही गौरव किसानों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। रात के अंधेरे में जंगली सूअरों को भगाने के लिए किसानों को खेतों में रहना पड़ता है, जहां अक्सर बाघ और तेंदुए देखे जा रहे हैं। अपनी जान जोखिम में डालकर फसल बचाना अब किसानों की मजबूरी बन चुकी है, क्योंकि खरीफ का कर्ज चुकाने और साल भर परिवार का पेट पालने का यही एकमात्र जरिया बचा है।
प्रशासनिक स्तर पर किसानों की सुरक्षा के लिए ‘संयुक्त वन प्रबंधन समितियों’ का गठन तो किया गया, लेकिन धरातल पर इनका लाभ शून्य है। सरकार ने सौर ऊर्जा संचालित बैटरियों और झटका मशीनों के वितरण की घोषणा की थी। हजारों किसानों ने इसके लिए अग्रिम राशि भी जमा की, लेकिन सीजन शुरू होने के बावजूद संसाधन उपलब्ध नहीं कराए गए हैं।
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वन विभाग की 70 प्रतिशत सब्सिडी वाली शॉक मशीन योजना भी किसानों के लिए सिरदर्द साबित हो रही है। योजना की शर्त है कि किसान पहले 100 प्रतिशत राशि का भुगतान कर मशीन खरीदे, जिसके बाद सब्सिडी खाते में आएगी। आर्थिक तंगी से जूझ रहे किसानों के लिए एक साथ पूरी राशि जुटाना नामुमकिन है।
ग्रामीणों और कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को अपनी योजनाओं की शर्तों में ढील देनी चाहिए। किसानों ने मांग की है कि उन्हें मुफ्त में सौर बैटरी, कांटेदार तार और अन्य सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराए जाएं। केवल कागजी घोषणाओं से फसलें नहीं बचेंगी। यदि समय रहते वन विभाग और जिला प्रशासन ने कृषि सुरक्षा के लिए कड़े कदम नहीं उठाए, तो किसानों का आक्रोश आने वाले समय में एक बड़े जन-आंदोलन का रूप ले सकता है।






