भंडारा जिला परिषद (सोर्स: सोशल मीडिया)
Bhandara Zilla Parishad President Reservation News: महाराष्ट्र की 34 जिला परिषदों के अध्यक्ष पदों के लिए आरक्षण की बहुप्रतीक्षित घोषणा ने भंडारा जिले की राजनीति में एक नई हलचल पैदा कर दी है। इस घोषणा के अनुसार, भंडारा जिला परिषद अध्यक्ष पद अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षित किया गया है, जिसने लंबे समय से इस पद का सपना देख रहे दावेदारों में आशा की नई किरण जगाई है। इस बदलाव से जिले के राजनीतिक समीकरणों में महत्वपूर्ण बदलाव आने की संभावना है, क्योंकि प्रमुख दलों और स्थानीय नेताओं ने अब अपनी रणनीतियों को फिर से बनाना शुरू कर दिया है।
यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब पूरे राज्य में ओबीसी और मराठा आरक्षण को लेकर राजनीतिक हलचल चरम पर है। भंडारा में अध्यक्ष पद ओबीसी के लिए आरक्षित होने से स्थानीय स्तर पर एक नया राजनीतिक संतुलन बनने की उम्मीद है। इस निर्णय से खासकर ओबीसी समुदाय के नेताओं और उनके समर्थकों में भारी उत्साह है।
जनवरी 2025 में हुए ढाई साल के अध्यक्ष पद के चुनाव में यह पद अनुसूचित जनजाति (महिला) वर्ग के लिए आरक्षित था। उस समय, पर्याप्त संख्या बल होने के बावजूद भाजपा अध्यक्ष पद हासिल नहीं कर सकी थी। इसका मुख्य कारण यह था कि उनका उम्मीदवार आरक्षण के मानदंडों को पूरा नहीं करता था, जिसके कारण वह अयोग्य घोषित हो गया था। इस अप्रत्याशित हार से भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों में गहरी निराशा फैल गई थी।
अब जबकि अध्यक्ष पद ओबीसी के लिए खुला है, भाजपा के पास पिछली हार की भरपाई करने का एक सुनहरा अवसर है। पार्टी इस बार कोई गलती नहीं करना चाहेगी और अपने सबसे मजबूत ओबीसी चेहरे को मैदान में उतारने की तैयारी करेगी। वहीं, कांग्रेस, जिसने 2021 और 2025 दोनों चुनावों में अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाया था, अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए पूरी ताकत लगाएगी।
भंडारा जिला परिषद में कुल 52 सदस्य हैं, और ओबीसी वर्ग के लिए अध्यक्ष पद आरक्षित होने से दावेदारों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। कांग्रेस और भाजपा दोनों में कई मजबूत ओबीसी नेता हैं जो इस पद के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। इससे यह साफ है कि आने वाले दिनों में दोनों प्रमुख दलों के भीतर अंदरूनी गुटबाजी और राजनीतिक शतरंज की चालें और अधिक तेज़ होंगी। हर कोई अपने-अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करेगा, जिससे यह चुनाव पहले की अपेक्षा अधिक रोमांचक और कड़ा मुकाबला वाला साबित होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार चुनाव में सिर्फ दो प्रमुख दल ही नहीं, बल्कि अन्य क्षेत्रीय दल और निर्दलीय सदस्य भी निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। उनका समर्थन हासिल करने के लिए भी राजनीतिक दलों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी, जिससे समीकरण और भी जटिल हो जाएंगे।
जिला परिषद अध्यक्ष पद के आरक्षण में बदलाव ने भंडारा की राजनीति में एक नई उथल-पुथल शुरू कर दी है। हालांकि चुनाव में अभी समय है, लेकिन राजनीतिक बिसात बिछनी शुरू हो गई है। आने वाले महीनों में हम दावेदारों की घोषणाओं, दलों की रणनीतियों और नए समीकरणों को देखेंगे, जो जिले की राजनीति को गरमा देंगे।
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भाजपा इस बार हर हाल में अध्यक्ष पद हासिल करना चाहेगी। पिछली बार हुई गलती से सबक लेते हुए, पार्टी अपने उम्मीदवार का चयन बहुत सावधानी से करेगी ताकि कोई तकनीकी खामी न रह जाए। वहीं, कांग्रेस के सामने अपनी जीत की परंपरा को बनाए रखने की चुनौती होगी। पार्टी को अपने मजबूत ओबीसी उम्मीदवारों में से सबसे योग्य को चुनना होगा और सभी गुटों को एकजुट रखना होगा।
इस चुनाव का असर सिर्फ अध्यक्ष पद तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह जिले की भविष्य की राजनीति की दिशा भी तय करेगा। यह चुनाव बताएगा कि क्या भाजपा अपनी पिछली हार से उबर पाई है या कांग्रेस अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने में सफल रही है।
चुनाव की घोषणा से लेकर मतदान तक, हर चरण पर राजनीतिक दलों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा देखने को मिलेगी। इस बार का चुनाव सिर्फ वोटों का खेल नहीं, बल्कि रणनीतियों, गठबंधनों और अंदरूनी राजनीति का एक बड़ा अध्याय साबित होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सा दल या नेता इन सभी चुनौतियों से पार पाकर अध्यक्ष पद पर अपनी मोहर लगाता है।