प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स: AI)
International Literacy Day Special: हर साल 8 सितंबर को मनाया जाने वाला अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस केवल औपचारिक आयोजन न रहकर ग्रामीण समाज के जीवन में शिक्षा की वास्तविक जागरूकता निर्माण करने का अवसर बने, ऐसी अपेक्षा जताई जा रही है। परंपरागत सोच के मुताबिक साक्षरता का अर्थ अक्सर केवल नाम लिख लेने या पढ़ लेने से लगाया जाता है। लेकिन वर्तमान समय में यह परिभाषा अधूरी साबित हो रही है। आज डिजिटल और आर्थिक साक्षरता की कमी के कारण पढ़े-लिखे लोग भी धोखाधड़ी का शिकार हो रहे हैं।
गांव के दैनिक जीवन का सीधा संबंध साक्षरता से है। किसान को खाद की बोरी पर लिखी जानकारी पढ़नी आनी चाहिए, मजदूर को बैंक कागजात की शर्तें समझनी चाहिए और महिलाओं को स्वास्थ्य शिविरों में दी गई जानकारी समझ में आनी चाहिए। यदि सरकारी योजनाओं की जानकारी पढ़ी न जा सके या मोबाइल संदेशों को समझ न पाएं तो यह साक्षरता अधूरी ही मानी जाएगी।
भंडारा जिले में 2024 में उल्लास नवभारत साक्षरता कार्यक्रम चलाया गया। इसमें 8,820 पंजीकृत लोगों में से 8,222 ने नवसाक्षर परीक्षा में सफलता प्राप्त की। यह आंकड़ा जिले की साक्षरता दिशा में प्रगति को दर्शाता है, लेकिन अब जोर डिजिटल और आर्थिक साक्षरता पर दिया जा रहा है। केवल अक्षर पहचान से आगे बढ़कर मोबाइल बैंकिंग और सरकारी पोर्टल का इस्तेमाल सीखना आवश्यक हो गया है।
शिक्षा विभाग के अनुसार सात वर्ष से ऊपर का कोई भी व्यक्ति यदि पढ़-लिख सकता है तो साक्षर माना जाता है। लेकिन वास्तविक जीवन में साक्षरता तभी सार्थक है जब वह समाज को बदलने और जीवन सुधारने में मददगार साबित हो। खासकर ग्रामीण महिलाओं ने शिक्षा की बदौलत स्वावलंबन की ओर कदम बढ़ाए हैं। वे अब स्वयं सहायता समूह का लेखा-जोखा रख रही हैं और मोबाइल पेमेंट ऐप्स का इस्तेमाल कर रही हैं। इस तरह साक्षरता अब केवल अक्षर पहचान तक सीमित न रहकर आर्थिक स्वतंत्रता की कुंजी बन गई है।
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आज सरकार की अधिकांश सेवाएं ऑनलाइन हो गई हैं—फसल बीमा, पेंशन, छात्रवृत्ति, जमीन रजिस्ट्री सब डिजिटल माध्यमों से जुड़ी हुई हैं। ग्रामीण किसान और मजदूर इन प्रक्रियाओं में अभी भी पीछे हैं। इसलिए डिजिटल साक्षरता को समय की सबसे बड़ी जरूरत माना जा रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस 2025 की थीम है—“डिजिटल युग में साक्षरता को प्रोत्साहन”। यह विषय ग्रामीण और शहरी, दोनों समाजों के लिए प्रासंगिक है। विशेषज्ञ मानते हैं कि शिक्षा का वास्तविक लक्ष्य केवल पढ़ना-लिखना नहीं, बल्कि जीवन को सक्षम और ठगी से सुरक्षित बनाना होना चाहिए।