प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स: सोशल मीडिया)
Bhandara News In Hindi: भंडारा जिले में सरकार भले ही सामाजिक सद्भाव और जातीय भेदभाव मिटाने के लिए अंतरजातीय विवाह प्रोत्साहन योजना का ढोल-नगाड़ों के साथ प्रचार करे, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। भंडारा जिले में 193 ऐसे जोड़े हैं जो इस योजना के तहत मिलने वाली 96 लाख 50 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते थक चुके हैं। अप्रैल 2024 से यह राशि शासन से नहीं मिली है, जिसकी वजह से ये लाभार्थी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।
सरकार ने वादा किया था कि अंतरजातीय विवाह करने वाले प्रत्येक जोड़े को 50,000 रुपये दिए जाएंगे। जिले में कुल 204 जोड़ों ने इस योजना के लिए आवेदन किया था, लेकिन केवल 120 जोड़ों को ही पैसा मिल सका। बाकी 193 जोड़े अब भी अपने हक के पैसों का इंतजार कर रहे हैं। यह सीधा-सीधा शासन की संवेदनहीनता और उदासीनता को दर्शाता है।
समाज कल्याण विभाग की दलील है कि कई जोड़ों के कागजात अधूरे हैं और उन्होंने नियमों का पालन नहीं किया है। हालांकि, यह सवाल उठता है कि अगर कागजात अधूरे थे, तो शासन ने सालों तक उनके प्रस्तावों को क्यों दबाकर रखा? क्यों इन जोड़ों को बार-बार दफ्तरों के चक्कर लगवाकर अपमानित किया गया?
वास्तविकता यह है कि अनुदान के लिए पर्याप्त राशि ही उपलब्ध नहीं कराई गई है। पिछले साल केवल 60 लाख रुपये ही भेजे गए थे, जिससे आधे-अधूरे लाभार्थियों को ही भुगतान हो पाया।
जोड़ों को न केवल समाज में अपने फैसलों के लिए सामाजिक विरोध का सामना करना पड़ता है, बल्कि सरकारी योजना का लाभ लेने के लिए उन्हें दफ्तरों में भी अपमान सहना पड़ता है। जाति प्रमाणपत्र, बैंक विवरण और पंजीकरण जैसी सभी प्रक्रियाएं पूरी करने के बावजूद भी जब उनके खातों में पैसा नहीं आता, तो यह सरकार की नाकामी और उसकी योजनाओं के खोखलेपन को उजागर करता है। ये जोड़े सवाल पूछ रहे हैं कि क्या उनका एकमात्र ‘अपराध’ यही है कि उन्होंने जातीय दीवारें तोड़ने की हिम्मत की?
सरकार दावा करती है कि इस योजना का मकसद सामाजिक सौहार्द बढ़ाना है, लेकिन हकीकत में यह योजना नौकरशाही की फाइलों में दबकर रह गई है। 193 जोड़ों का 96 लाख 50 हजार रुपये का हक अधर में लटका हुआ है। वे आज भी सरकार से जवाब मांग रहे हैं।
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इस मामले पर, समाज कल्याण विभाग की सहायक आयुक्त आशा कवाडे ने कहा, “अब तक 120 लाभार्थियों को 60 लाख रुपये का अनुदान दिया जा चुका है। शेष 96 लाख 50 हजार रुपये की मांग शासन को भेजी गई है। राशि उपलब्ध होते ही वितरित कर दी जाएगी।”
यह खबर बताती है कि सरकार की घोषणाओं और जमीनी हकीकत में कितना बड़ा अंतर है। जिन जोड़ों ने सामाजिक बाधाओं को तोड़कर शादी की, उन्हें अब सरकारी लालफीताशाही और उदासीनता का सामना करना पड़ रहा है। जब तक लंबित राशि जारी नहीं की जाती, तब तक यह योजना अपने मूल उद्देश्य से भटकी हुई ही नज़र आएगी।