
प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स: सोशल मीडिया)
Kannad Tehsil Agriculture News: कन्नड़ तहसील के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों में पिछले कुछ दिनों से लगातार बदलते मौसम के चलते चना संग अन्य फसलों पर इल्ली का प्रकोप तेजी से बढ़ता जा रहा है।
कहीं गोगलगाय तो कहीं कटवर्म (घाटी इल्ली) के चलते फसलों को भारी चपत लग रही है। नतीजतन, किसानों की आमदनी घटने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में कृषि विभाग से मार्गदर्शन की जरूरत महसूस की जा रही है।
रात के समय बढ़ती ठंड और दिन में तापमान में अचानक होने वाले बदलाव ने तहसील में कीट एवं रोगों के लिए अनुकूल वातावरण बना दिया है। चना, अरहर, सोयाबीन, कपास, सूरजमुखी व सब्जियों जैसी कई फसलों में इल्ली की संख्या तेजी से बढ़ रही है व किसान चिंतित हैं।
कन्नड़ तहसील के चिखलठाण, नीमडोंगरी, वासड़ी, हसता, रामनगर, पिशोर, भीलदरी, कोलंबी संग कई गांवों में चने की फसल के पत्तों में छेद पड़ना, तने से चिपकी इल्ली, कलियों का नष्ट होना व ऊपरी हिस्से का खराब होना आदि लक्षण दिखाई दे रहे हैं।
किसानों का कहना है कि अरहर व चने की फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान हो रहा है। कई किसान पूरा सप्ताह केवल फसलों की निगरानी, दवा छिड़काव व फसल की स्थिति जांचने में ही व्यस्त हैं। इल्ली का प्रकोप इतना तीव्र है कि लक्षण दिखने के 48 घंटे के भीतर ही पूरा खेत बर्बाद होने की स्थिति बन जाती है।
नतीजतन, भविष्य में किसानों पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। तहसील कृषि विभाग ने बताया कि वर्तमान मौसम इल्ली व अन्य कीटों के बढ़ने के लिए अनुकूल है। बढ़ती आर्द्रता, दिन के तापमान में अचानक गिरावट, बादलों की अधिकता व अनियमित वर्षा की स्थिति कीट प्रकोप को बढ़ावा दे रही है।
उक्त मौसम में इल्ली पत्तियों के आवश्यक पोषक तत्वों की खा जाती है व फूलों को क्षति पहुंचाकर सीधे उत्पादन में कमी लाती है। नतीजतन, किसान अब बाजार भाव की चिंता छोड़कर फसल बचाने रात में खेतों की निगरानी कर रहे है। सुबह-शाम कीटनाशकों का छिड़काव बढ़ गया है।
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कीट प्रकोप से हताश तहसील के विभिन्न गांवों के किसान सरकार से त्वरित सहायता की मांग कर रहे है, कई किसानों ने इस बाबत तहसील कार्यालय में ज्ञापन सौंपकर नुकसान का पंचनामा करने, मुआवजा देने का अनुरोध किया है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार समय पर उचित उपाय न किए गए तो उत्पादन में 25 से 40 फीसदी तक गिरावट संभव है। इसके लिए खेतों का नियमित निरीक्षण, पत्तियों की निचली सतह की जांच, संक्रमित पत्तियों को निकालकर नष्ट करना, फेरोमोन ट्रैप का उपयोग व वैज्ञानिक तरीके से दवा छिड़काव करने की सलाह दी गई है। कुछ स्थानों पर किसानों ने सामूहिक रूप से दवा छिड़काव किया है, जिससे आंशिक सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं। बदलते मौसम के कारण यह राहत स्थायी नहीं है।






