प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स: सोसल मीडिया )
Chhatrapati Sambhajinagar Election: छत्रपति संभाजीनगर मनपा चुनाव में सभी राजनीतिक दल जोर-शोर से दावा कर रहे हैं कि इस बार युवा निर्णायक भूमिका निभाएंगे।
यही नहीं, सोशल मीडिया अभियानों, युवा सम्मेलनों, बैठकों व प्रचार सभाओं में भी बड़ी संख्या में युवा चेहरों को आगे किया जा रहा है। हकीकत यह है कि वास्तविक निर्णय प्रक्रिया में युवाओं को अपेक्षित स्थान नहीं मिल पा रहा है।
राजनीतिक दल युवाओं की भागीदारी को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, पर जमीनी राजनीतिक हालत कुछ और ही है। उम्मीदवार तय करना, टिकट वितरण व चुनावी रणनीति बनाने की बागडोर आज भी अनुभवी नेताओं, पूर्व नगरसेवकों और वरिष्ठ पदाधिकारियों के हाथों में ही है।
कई प्रभागों में एक बार फिर पारंपरिक चेहरे बतौर प्रत्याशी सामने लाए जा रहे हैं। युवाओं का आरोप है कि उनका इस्तेमाल सिर्फ पोस्टरबाजी, नारेबाजी और ऑनलाइन प्रचार के लिए किया जा रहा है। युवाओं का मलाल इस बात का है कि प्रचार के समय उन्हें आगे किया जाता है, पर फैसले लेते उनकी अनदेखी की जाती है।
मनपा चुनाव में युवाओं का जिक्र तो बड़े पैमाने पर हो रहा है, लेकिन वास्तविक निर्णय प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सीमित ही दिखाई दे रही है। यह चुनाव नए राजनीतिक दौर की शुरुआत करेगा या फिर पुरानी राजनीतिक परंपराओं की ही।
पुनरावृत्ति होगी, इस पर शहरवासियों की नजरें लगी हुई हैं। मतदान के दिन यह तय होगा कि ‘युवा निर्णायक हैं’ का नारा हकीकत बनेगा या केवल प्रचार तक ही सीमित रहेगा।
सभी राजनीतिक दल युवाओं से सीधा संवाद साधने का दावा कर रहे हैं। हालांकि, कई बैठकें केवल औपचारिक साबित हो रही है। युवाओं द्वारा उठाए गए गुंठेवारी, अतिक्रमण, रोजगार के अवसर, शिक्षा के बाद की अनिश्चितता व स्थानीय विकास जैसे अहम मुद्दों पर ठोस रुख सामने नहीं आ रहा है। युवाओं का कहना है कि सवाल पूछने पर जवाब देने के बजाए सिर्फ आश्वासनों की खानापूर्ति की जाती है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार आज भी जातीय समीकरण, आर्थिक ताकत, स्थानीय गुटबाजी व पार्टी के भीतर का दबाव ही प्रत्याशी तय करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। विकास, रोजगार व पारदर्शिता जैसे मुद्दों की चर्चा भले ही प्रचार में की जा रही हो, मगर चुनावी प्रबंधन अब भी पुराने ढर्रे पर ही जारी है।
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खास बात यह है कि शहर में युवा मतदाताओं की संख्या 2.53 लाख होने के बावजूद उनकी कोई एकजुट राजनीतिक भूमिका नजर नहीं आती। बड़ी संख्या में युवा या तो मतदान से दूर रहते हैं या फिर पारंपरिक राजनीतिक प्रभाव में वोट डालते हैं। इसी कारण संख्या में अधिक होने के बावजूद युवा वास्तविक रूप से निर्णायक नहीं बन पा रहे हैं।