
प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स: सोसल मीडिया )
Sickle Cell Survey Maharashtra: छत्रपति संभाजीनगर राज्य में सिकलसेल एनीमिया के मामले बढ़ रहे हैं और इससे छत्रपति संभाजीनगर जिला भी अछूता नहीं है।
राज्य सरकार के राष्ट्रीय सिकलसेल एनीमिया उन्मूलन मिशन के तहत किए गए सर्वेक्षण में जिले में 478 सिकलसेल वाहक और 52 रोगियों की पहचान की गई है।
समझा जाता है कि यह अधिकतम मरीज सिल्लोड़ व सोयगांव तहसील के पहाड़ी और आदिवासी बस्तियों के हैं। स्वास्थ्य विभाग के लिए यह चिंता की बात मानी जा रही है।
सिल्लोड़ तहसील के आधारवाड़ी, को हाला, जंजाला, घटांबी, सिरसाला तांडा, केलगांव, शेखपुर, पिंपलगांव घाट, खुपटा, मादणी, वडाली, जलकी, वसई, हलदा और डकला जैसे गांवों में सिकलसेल की जांच जनजागरूकता व उपचार सुविधाओं को प्रभावी रूप से लागू करने की जरूरत विशेषज्ञों ने जताई है।
इसके अलावा, सोयगांव तहसील पूरी तरह पहाड़ी और आदिवासी बहुल क्षेत्र होने के चलते यहां विशेष स्वास्थ्य योजना बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि भौगोलिक चुनौतियां, स्वास्थ्य सेवाओं का सीमित नेटवर्क और जन जागरूकता की कमी इन क्षेत्रों में बीमारी की पहचान और उपचार में बाधाएं पैदा कर रही हैं।
जिले में सिकलसेल के बढ़ते मामलों को देखते हुए सिल्लोड़ और सोयगांव तहसीलों में विशेष स्वास्थ्य अभियान, नियमित जांच शिविर, स्थानीय स्तर पर जनजागरूकता और समय पर उपचार सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने की मांग प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग से की जा रही है।
सिकलसेल के प्रमुख लक्षणों में लगातार थकान, कमजोरी, हाथ-पैरों में सूजन, बार-बार संक्रमण, सांस लेने में कठिनाई, त्वचा और आंखों का पीला पड़ना, वृद्धि में कमी और दृष्टि संबंधी समस्याएं आदि का समावेश है।
विशेषज्ञों ने कहा कि हीमोग्लोबिन की असामान्य संरचना के कारण यह रक्त रोग गंभीर दर्द, बार-बार बीमारी और अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है।
इसे देखते हुए राज्य सरकार निःशुल्क जांच और इलाज की सुविधा उपलब्ध करा रही है। पहाड़ी और आदिवासी
इलाकों में इसकी प्रभावी पहुंच अब भी चुनौती बनी हुई है।
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प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को सिल्लोड़-सोयगांव में विशेष स्वास्थ्य अभियान चलाना, नियमित जांच शिविर लगाना, जनजागृति करना और समय पर इलाज सुनिश्चित करना चाहिए।






