बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच (सौ. सोशल मीडिया )
Chhatrapati Sambhaji Nagar News In Hindi: बॉम्बे उच्च न्यायालय की औरंगाबाद खंडपीठ ने एक अहम फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति किशोर संत की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि वरिष्ठ अधिकारियों को कार्यस्थल पर दिया गया निषेध का ज्ञापन बदनामी का कारण नहीं हो सकता।
शहर के सरकारी ज्ञान-विज्ञान महाविद्यालय की सेवानिवृत्त प्राध्यापिका चंद्रज्योति मुले-भंडारी व अन्य 23 शिक्षक-कर्मचारियों की ओर से दायर बदनामी के फौजदारी मुकदमे पर यह अहम फैसला सुनाया है जिससे आरोपी बनाए गए याचिकाकर्ताओं को राहत मिली है।वर्ष 2009 में कॉलेज की एक महिला प्राध्यापिका ने आरोप लगाया था कि विभाग प्रमुख के अनुचित टिप्पणियां करने से उनका मानसिक उत्पीड़न हुआ।
उक्त घटना के विरोध में महाविद्यालय ‘के 39 शिक्षक व कर्मियों ने प्राचार्य को चार पंक्तियों का निषेध पत्र सौंपकर घटना को ‘स्त्रीत्व का अपमान’ बताते हुए संबंधित पर कठोर कार्रवाई की मांग की गई थी।तदुपरांत संबंधित प्राध्यापक ने शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि इस निषेध पत्र से उनकी मानहानि हुई है व 39 कर्मियों को सजा दी जाए, मामला प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत में दाखिल कर महिला समेत कई कर्मियों को आरोपी बनाया गया।
ये भी पढ़ें :- बिजली का बिल न भरने पर होगी बत्ती गुल, 4 लाख ग्राहकों ने नहीं भरा 238 करोड़ इलेक्ट्रिसिटी बिल
इस पर उच्च न्यायालय का रुख करने पर खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ चल रहा मानहानि का मुकदमा रद्द कर दिया।सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि निषेध पत्र केवल प्राधिकृत अधिकारी को सीधा गया था व यह भारतीय दंड संहिता की धारा 499 (मानहानि) के दायरे में नहीं आता।धारा 499 की अपवाद संख्या 8 में उल्लेख है कि प्राधिकृत व्यक्ति को न्यायोचित शिकायत था ज्ञापन देना बदनामी नहीं माना जा सकता।