
किसान आत्महत्या पर बयान को लेकर HC ने बच्चू कडू को लगाई फटकार (फाइल फोटो)
High Court Strict On Bachchu Kadu’s Statement: किसान सड़कों पर उतरते हैं तो तुरंत आदेश दिए जाते हैं, लेकिन किसान आत्महत्या करते हैं तब न्यायालय संज्ञान क्यों नहीं लेता ? यह सवाल उठाने वाले पूर्व विधायक बच्चू कडू के बयान पर मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। न्यायमूर्ति अनिल किलोर और रजनीश व्यास ने कहा कि हम न तो किसान विरोधी है और न ही किसान आंदोलन के खिलाफ थे।
न्यायालय ने केवल उस स्थिति में हस्तक्षेप किया था जब किसान आंदोलन के कारण राष्ट्रीय राजमार्ग अवरुद्ध हुआ और आम जनता को भारी असुविधा का सामना करना पड़ा। साथ ही इसके आगे बोलते समय सत्यस्थिति क्या है, यह समझकर बोलने की सलाह भी उच्च न्यायालय ने बच्चू कडू को दी।
उच्च न्यायालय ने स्वयं संज्ञान लेकर महामार्ग खुला करने के आदेश देने के बाद बच्चू कडू ने भाषण में न्यायालय की भूमिका पर आपत्ति जताई थी। गुरुवार को सुनवाई दौरान उच्च न्यायालय ने किसान विरोधी न रहने का स्पष्ट करते हुए कडू ने किसान प्रश्नों पर कितनी जनहित याचिका दाखिल की, यह सवाल उपस्थित किया। इसके पूर्वकिसानों के पक्ष में उच्च न्यायालय ने दिए आदेश और किसान समस्याओं घर लिए निर्णय का अध्ययन करने की मौखिल सलाह कडू को दी।
करीब एक सप्ताह पहले बच्चू कडू के नेतृत्व में किसान कर्जमाफी की मांग को लेकर नागपुर में आंदोलन किया गया था। इस आंदोलन के कारण वर्धा मार्ग पर यातायात ठप हो गया था। इस पर हाईकोर्ट ने तुरंत आदेश देकर महामार्ग खुलवाने का आदेश दिया था। इस प्रकरण में गुरुवार को हुई सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ सरकारी वकील देवेंद्र चौहान ने पक्ष रखा, जबकि बच्चू कडू की ओर से एड. स्मिता कडू की ओर से वकीलों ने दलील दी कि आंदोलन शांतिपूर्ण था।
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इस पर न्यायालय ने सख्त टिप्पणी की। ‘शांतिपूर्ण आंदोलन का अर्थ क्या है? क्या केवल इसलिए कि वाहनों की तोड़फोड़ या आगजनी नहीं हुई, आप उसे शांतिपूर्ण कहेंगे? जब एंबुलेंस जाम में फंस गईं, मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिला, अगर किसी की जान गई तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?’ ऐसे हालात में आंदोलन को शांतिपूर्ण कहना बिल्कुल गलत होगा।






