
दादासाहब फाल्के स्मारक का लोकार्पण (सौजन्य-नवभारत)
 
    
 
    
Amravati News Maharashtra: मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि दादासाहेब गवई का जीवन कार्य समाज सुधार, समरसता और लोककल्याण के लिए समर्पित था। उनके जीवन पर आधारित पुस्तक भी हमने प्रकाशित की, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके विचारों से प्रेरणा लें, उन्होंने बताया कि दादासाहब गवई का व्यक्तित्व डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, भगवान बुद्ध, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज और गाडगेबाबा के विचारों से प्रेरित था।
वे जातिवाद, अंधश्रद्धा और समाज में फैली कुरीतियों के विरोधी थे। दादासाहेब एक ऐसे नेता थे जिनका कोई शत्रु नहीं था। वे हमेशा सभी दलों के साथ समान व्यवहार करते थे, और इसी कारण सभापति व उपसभापति जैसे पदों पर सर्वसम्मति से निर्वाचित होते थे। हम सबने मिलकर ठाना था कि दादासाहेब का स्मारक अमरावती में ही बने और आज यह सपना साकार हुआ है। स्मारक परिसर स्थित गैलरी में दादासाहेब के जीवन की तस्वीरें, भाषण और महत्वपूर्ण घटनाओं को एआई तकनीक से प्रदर्शित किया गया है। उनके कुछ भाषण उनके ही स्वर में सुनने को मिलते हैं।
पूर्व राज्यपाल दादासाहब गवई के स्मारक का उद्घाटन मेरे मुख्य न्यायाधीश बनने और देवेंद फडणवीस के मुख्यमंत्री रहते हुए हुआ, क्योंकि ऐसा नियती की इच्छा थी। बहुत कम बच्चे इतने भाग्यशाली होते हैं कि अपने पिता के स्मारक के उद्घाटन में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हो पाते हैं। ऐसा सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई ने कहा।
दिवंगत पूर्व राज्यपाल राष्ट्रीय उपाख्य दादासाहेब गवई के स्मारक का गुरुवार को उद्घाटन हुआ, वे उस समय बोल रहे थे। कार्यक्रम में पालकमंत्री चंद्रशेखर बावनकुले, राज्यमंत्री डॉ. पंकज भोयर, राज्यमंत्री आशीष जायसवाल, कमल गवई, सांसद बलवंत वानखडे, विधायक रवि राणा, प्रवीण तायडे, सुलभा खोडके के साथ-साथ जनप्रतिनिधि और जिले के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
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दादासाहेब गवई ने डॉ. पंजाबराव देशमुख के खिलाफ पहला चुनाव लड़ा था। अमरावती शहर को अपर वर्धा बांध से जलापूर्ति सुनिश्चित करने के लिए जो संघर्ष किया गया था, उसमें दादासाहेब गवई, डॉ. देवीसिंह शेखावत और पूर्व विप सदस्य बी. टी. देशमुख का बड़ा योगदान था। अमरावती विवि की स्थापना में भी इन तीनों नेताओं की भूमिका रही है।
उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि दादासाहेब गवई का जीवन संघर्ष, सेवाभाव और आंबेडकरी विचारों की निष्ठा से प्रेरित था। राजनीति में उनका कोई गॉडफादर नहीं था, परंतु अपनी वक्तृत्वकला, कर्तृत्व और नेतृत्व के बल पर उन्होंने ऊंचाई हासिल की। गवई साहब ने दीक्षाभूमि के कार्य को गति दी और आज वह विश्वस्तर पर बौद्धों का तीर्थस्थल बन चुका है। नागपुर आने वाला कोई व्यक्ति दीक्षाभूमि गए बिना नहीं रहता। यह दादासाहेब के योगदान प्रमाण है। दादासाहेब ने कभी सत्ता को साध्य नहीं माना, सेवा को ही अपना धर्म समझा।
दादासाहेब गवई ने अपने संपूर्ण जीवन में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों को आचरण में उतारते हुए समाजसेवा की। दादासाहेब गवई 1964 में पहली बार विधान परिषद के सदस्य बने, और चार साल बाद वे उपसभापती व उसके बाद सभापती बने। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मुझे भी 1990 में विधायक बनने के बाद उनके साथ काम करने का सौभाग्य मिला, यह मेरे जीवन का अभिमान है। दादासाहेब को राजनीति में कोई ‘गॉडफादर’ नहीं मिला, लेकिन कर्मवीर दादासाहेब गायकवाड़ उनके प्रेरणास्रोत थे।






