अकोला की 12 वर्षीय बच्ची की हाईकोर्ट से भावनात्मक अपील (सौजन्यः सोशल मीडिया)
अकोला: महाराष्ट्र के अकोला जिले की एक 12 वर्षीय नाबालिग बलात्कार पीड़िता ने मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ से गर्भपात की अनुमति मांगी है। पीड़िता ने याचिका में निवेदन किया है कि यदि गर्भपात की इजाज़त नहीं दी गई, तो उसका संपूर्ण जीवन बर्बाद हो जाएगा।
पीड़िता ने कहा है कि यह गर्भ उसकी इच्छा के खिलाफ है, और इससे उसे मानसिक, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अपूरणीय क्षति होगी। याचिका के अनुसार, फिलहाल उसके गर्भ में 28 सप्ताह का भ्रूण है। हालांकि, याचिकाकर्ता की ओर से आग्रह किया गया है कि विशेष परिस्थितियों को देखते हुए गर्भपात की अनुमति दी जाए।
बालिका अकोला जिले के बालापुर क्षेत्र की निवासी है और आठवीं कक्षा की छात्रा है। वह अपने माता-पिता और दो बहनों के साथ रहती है। आरोप है कि पास में रहने वाले एक रिश्तेदार ने 2024 में कई बार उसके साथ बलात्कार किया। डर और शर्म के चलते वह चुप रही। बाद में जब तबीयत बिगड़ी, तो जांच में गर्भवती होने का खुलासा हुआ। परिजनों ने तत्काल पुलिस में शिकायत की। 5 जून 2025 को आरोपी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई और उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया है।
सोमवार को न्यायमूर्ति नितिन सांबरे और न्यायमूर्ति सचिन देशमुख की खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की। अदालत ने अकोला के सरकारी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल को निर्देश दिया कि एक विशेष मेडिकल बोर्ड का गठन कर पीड़िता की मेडिकल जांच की जाए। बोर्ड को मंगलवार तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी कि गर्भपात पीड़िता के स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है या नहीं।
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पीड़िता की ओर से अधिवक्ता सोनिया गजभिये ने कोर्ट में कहा, “यह केवल एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि एक मासूम बच्ची के जीवन का प्रश्न है। अगर यह गर्भ जारी रहा, तो उसका पूरा बचपन और भविष्य दांव पर लग जाएगा। वह अब भी छात्रा है और उसे समाज में सम्मान से जीने का अधिकार है।”
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम, 2021 के अनुसार, यदि मेडिकल बोर्ड यह पाता है कि गर्भवती महिला — विशेष रूप से नाबालिग — के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है, तो 24 सप्ताह के बाद भी गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है।
मंगलवार को मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर अदालत यह तय करेगी कि गर्भपात की अनुमति दी जाए या नहीं। यह फैसला आने वाले समय में इसी तरह के मामलों में कानूनी मिसाल बन सकता है। यह खबर सिर्फ एक अदालती याचिका नहीं है, यह एक बच्ची के आत्मसम्मान और भविष्य को बचाने की कोशिश भी है। अदालत से अब संवेदनशील, जिम्मेदार और न्यायसंगत फैसला अपेक्षित है।