विश्व साड़ी दिवस (सौ.सोशल मीडिया)
5000 Year old Saree History: हर साल 21 दिसंबर को विश्व साड़ी दिवस (World Saree Day) मनाया जाता है। यह दिवस भारतीय संस्कृति, परंपरा और नारी सौंदर्य का उत्सव होता है। इस दिन महिलाएं अपनी पसंदीदा साड़ी पहनकर न सिर्फ अपनी जड़ों से जुड़ती हैं, बल्कि सोशल मीडिया के जरिए साड़ी की विरासत को दुनिया के सामने भी पेश करती हैं। पारंपरिक परिधानों में से एक साड़ी आज 5000 साल का सफर तय करने के बाद मॉडर्न युग में खास स्टाइल स्टेटमेंट बन गई है। साड़ी केवल एक परिधान नहीं, बल्कि हजारों सालों से चली आ रही सभ्यता, शिल्पकला और पहचान की कहानी है।
जैसा कि, हम जानते है साड़ी का इतिहास बहुत पुराना है इसके कई बरस निकल गए है। इसके इतिहास की बात करें तो, साड़ी का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता (2800–1800 ईसा पूर्व) से जुड़ा माना जाता है। जब पुरातात्विक खुदाई की गई तो इसमें कॉटन फाइबर मिला था। यह इस बात का प्रमाण हैं कि भारत में लगभग 5000 साल पहले बुनाई की कला विकसित हो चुकी थी। उस समय महिलाएं बिना सिले कपड़े को शरीर पर लपेटकर पहनती थीं, जिसे आगे चलकर साड़ी का प्रारंभिक रूप माना गया।
जैन और बौद्ध ग्रंथों में वर्णित ‘सत्तिका’ साड़ी का शुरुआती स्वरूप थी, जिसमें तीन भाग होते थे—
अंत्रिय (निचला वस्त्र),
उत्तरिय (ओढ़नी),
स्तनपट्ट (सीने को ढकने वाला पट्टा)।
समय के साथ यही अंत्रिय धोती और साड़ी में बदला, स्तनपट्ट चोली बना और उत्तरिय दुपट्टे के रूप में विकसित हुआ। आप जानते नहीं होंगे कि, ऋग्वेद और संस्कृत साहित्य में भी बिना सिले वस्त्रों का उल्लेख मिलता है, जो साड़ी की प्राचीनता को साबित करता है।
मौर्य और गुप्त काल में साड़ी और भी निखरती गई यानि अजंता की गुफाओं की चित्रकारी रेशमी और अलंकृत साड़ियों की झलक देती है। मध्यकाल में क्षेत्रीय साड़ियों बंगाल की मलमल, गुजरात की बंधनी, महाराष्ट्र की पैठणी और दक्षिण भारत की कांचीपुरम सिल्क ने अपनी अलग पहचान बनाई है। यह अलग-अलग क्षेत्रों की साड़ी आज भी महिलाओं की पसंद बनी हुई है। मुगल काल में ज़री, कढ़ाई और पैस्ले डिज़ाइन का चलन बढ़ा और सिलाई वाली चोली (ब्लाउज़) काफी पॉपुलर हुआ है।
समय के साथ साड़ी की डिजाइन और पहनने के स्टाइल में लगातार बदलाव होता जा रहा है। यहां पर आधुनिक समय में महिलाएं साड़ी के पहनावे को आज भी आरामदायक परिधान मानती है। मॉडर्न फैशन युग में साड़ी आधुनिक फैशन का परफेक्ट मेल बन गई है। यहां पर मुंबई फैशन वीक से लेकर ऑफिस वियर तक, साड़ी नए ड्रेप, फैब्रिक और प्रिंट्स में नजर आ रही है. ऑर्गेनिक कॉटन, हैंडलूम, सस्टेनेबल फैब्रिक और प्री-स्टिच्ड साड़ियों का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है।
तो दोस्तों, छह गज की यह साड़ी आज भी भारत की सांस्कृतिक विरासत, मजबूती और खूबसूरती की कहानी कहती है और यही इसे कालजयी बनाती है।