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-सीमा कुमारी
फाल्गुन महीने की ‘विजया एकादशी’ (Vijaya Ekadashi) व्रत 27 फरवरी, रविवार को है। यह पावन तिथि समस्त संसार के पालनकर्ता भगवान श्रीहरि विष्णु (Lord Vishnu)को समर्पित है। ज्योतिष- शास्त्र के अनुसार,’विजया एकादशी’के व्रत को विधि पूर्बक एवं सह्रदय मन से करने से जातक को हर कार्य में सफलता मिलती है।
यह एकादशी विजय प्रदान करने वाली एकादशी मानी जाती है। यानी ‘विजया एकादशी’व्रत करने से मनुष्य को विजय की प्राप्ति होती है। और शत्रुओं में पर जीत हासिल होती है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानें इस विजया एकादशी का महत्व, तिथि, पूजा मुहूर्त और व्रत पारण का समय –
पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 26 फरवरी दिन शनिवार को सुबह 10 बजकर 39 मिनट से हो रहा है, जो अगले दिन 27 फरवरी दिन रविवार को प्रात: 08 बजकर 12 मिनट तक है। उदयातिथि के आधार पर 27 फरवरी को विजय एकादशी व्रत रखना चाहिए ।
विजया एकादशी व्रत की पूजा में सात धान रखने का विधान है अतः एक वेदी बनाकर उस पर सप्त धान रखें। इस पर जल कलश स्थापित कर इसे आम या अशोक के पत्तों से सजाएं। तत्पश्चात भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित कर पीले पुष्प,ऋतुफल,तुलसी आदि अर्पित कर धूप-दीप से श्री हरि की आरती उतारें। व्रत की सिद्धि के लिए घी का अखंड दीपक जलाएं ,एवं दीपदान करना शुभ माना गया है। इस दिन हरि भक्तों को परनिंदा,छल-कपट,लालच,द्वेष की भावनाओं से दूर रहकर श्री नारायण को ध्यान में रखते हुए भक्ति भाव से व्रत करना चाहिए।
‘विजया एकादशी’ का व्रत रखने वाले व्रती व्रत का पारण 28 फरवरी को सुबह 06 बजकर 48 मिनट से 09 बजकर 06 मिनट के बीच कर लेना चाहिए। इसके बाद द्वादशी तिथि का समापन सूर्योदय के पहले होगा।
सभी व्रतों में एकादशी का व्रत सबसे प्राचीन माना जाता है। पद्म पुराण के अनुसार स्वयं महादेव ने नारद जी को उपदेश देते हुए कहा था कि, ’एकादशी महान पुण्य देने वाली होती है’। कहा जाता है कि जो मनुष्य विजया एकादशी का व्रत रखता है उसके पितृ और पूर्वज कुयोनि को त्याग स्वर्ग लोक जाते हैं। साथ ही व्रती को हर कार्य में सफलता प्राप्त होती ही है और उसे पूर्व जन्म से लेकर इस जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है।