-सीमा कुमारी
हर साल ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा तिथि को ‘संत कबीर दास’ जयंती (Kabirdas Jayanti) मनाई जाती है। इस साल यह जयंती 14 जून, मंगलवार को है। कबीर दास ने अपने दोहों, विचारों और जीवनवृत्त से मध्यकालीन भारत के सामाजिक और धार्मिक, आध्यात्मिक जीवन में क्रांति का सूत्रपात किया था। जब कबीर जी का जन्म हुआ था तब समाज में हर तरफ बुराइयां और पाखंड फैला हुआ था।
संत कबीर ने अपना पूरा जीवन काल समाज से पाखंड, अंधविश्वास को दूर करने में लगा दिया। संत कबीर के दोहे व्यक्ति को अंधकार से निकालकर सही राह दिखाते हैं। इनके दोहे अत्यंत सरल भाषा में थे। जिसके कारण उन दोहो को जनमानस आसानी से समझ सकते थे। आज भी लोग इनके दोहे गुनगुनाते हैं। तो आइए जानें संत कबीर दास जी की जयंती के पावन अवसर पर उनके जीवन से जुड़े अनमोल वचन।
ऐसा कहा जाता है कि संत कबीर का जन्म रामानंद गुरू के आशीर्वाद से एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। कहा जाता है कि लोक-लाज के भय से उसने इन्हें काशी के समक्ष लहरतारा नामक ताल के पास छोड़ दिया था। जिसके बाद उस राह से गुजर रहे लेई और लोइमा नामक जुलाहे ने इनका पालन-पोषण किया। तो वहीं कुछ विद्वानों का मत है कि कबीर जन्म से ही मुस्लिम थे और इन्हें गुरु रामानंद से राम नाम का ज्ञान प्राप्त हुआ था।
कबीर जी के विषय में कहा जाता है कि ये निरक्षर थे। इनके द्रारा जितने भी दोहो की रचना की गई है वे केवल इनके मुख से बोले गए हैं। इन्होंने अपनी अमृत वाणी से लोगों के मन में व्याप्त भ्रांतियों को दूर किया और धर्म के कट्टरपंथ पर तीखा प्रहार किया था। इन्होंने समाज को सुधारने के लिए कई दोहे कहे जिसके कारण ये समाज सुधारक कहलाए। संत कबीर के नाम से कबीर पंथ नामक समुदाय की स्थापना की गई। आज के समय में भी इस पंथ को लाखों अनुयायी हैं।
लोगों में फैले अधंविश्वास को दूर करने के लिए कबीर जी पूरे जीवन काशी में रहे लेकिन अंत समय मगहर चले गए और मगहर में ही कबीर दास जी की मृत्यु हुई। कबीर जी को मानने वाले लोग हर धर्म से थे, इसलिए जब इनकी मृत्यु हुई तो उनके अंतिन संस्कार को लेकर हिंदू और मुस्लिम दोनों विवाद होने लगा। तभी जब शव से चादर उठाई गई तो वहां पर केवल फूल थे। इन फूलों को लोगों ने आपस में बांट लिया और अपने अनुसार अंतिम संस्कार किया।