सीमा कुमारी
नई दिल्ली: ‘नवरोज'(Navroz) का त्यौहार पारसी धर्म का मुख्य त्यौहार है। यह त्यौहार पारसी समुदाय के लोगों के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है। दुनियाभर में पारसी नववर्ष वर्ष में 2 बार मनाया जाता है। पहला 21 मार्च को और दूसरा 16 अगस्त को।
इतिहासकारों के अनुसार, नवरोज दो पारसी शब्दों ‘नव’ और ‘रोज’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है- नया दिन। यानी कि नवरोज के त्योहार के साथ पारसी समुदाय के नए साल की शुरुआत होती है। इस दिन से ही ईरानी कैलेंडर की भी शुरुआत होती है।
भारत में पारसी समुदाय, शहंशाही कैलेंडर का पालन करते हैं। भारत में, पारसी न्यू ईयर की तारीख अलग होती है। इस साल 16 अगस्त 2023 बुधवार को पारसी न्यू ईयर मनाया जाएगा। आइए जानें इस त्यौहार के बारे में-
पारसी नव वर्ष या नवरोज़ की तैयारी उस नवीनीकरण का जश्न मनाने पर ध्यान केंद्रित किए जाने के साथ शुरू होता है। जो नए वर्ष का स्वागत करता है, जैसे कि घर की सफाई करना, नए कपड़े पहनना, उपहार देना और धर्मार्थ दान करना। लोग मंदिरों में पूजा-अर्चना करने जाते हैं और फरचा, अंडा पैटीज़, मिठू दही, साली बोटी और जर्दालू चिकन जैसे पारसी व्यंजनों के स्वाद का आनंद लेते हैं। लोग अच्छे भाग्य और स्वास्थ्य की कामना के साथ एक-दूसरे को पारसी नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हैं।
नवरोज का त्यौहार पारसी राजा जमशेद के नाम पर रखा गया था। पारसी या शहंशाही कैलेंडर बनाने का श्रेय भी पारसी राजा जमशेद को दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जमशेद ने दुनिया को सर्वनाश होने से बचाया था। राजा जमशेद ने इसी रोज सिंहासन भी ग्रहण किया था, तभी से इस दिन को पारसी समुदाय के लिए नए साल के रूप में मनाए जाने की शुरुआत हुई।
पारसी समुदाय की मान्यताओं के अनुसार, इस दिन राजा जमदेश की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख और समृद्धि बढ़ती है।
अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, साल 365 दिन होते हैं लेकिन पारसी शहंशाही कैलेंडर के अनुसार साल में 360 दिन होते हैं। पारसी समुदाय के द्वारा पांच दिन गाथा के रूप में मनाए जाते हैं। पांच दिन जब परिवार के सभी लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं, तो उसे गाथा कहा जाता है।
पारसी समुदाय के लोगों के लिए नवरोज का पर्व आस्था और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है। पारसी न्यू ईयर को लोग पूर्व संध्या से मनाना शुरू करते हैं। पारसी लोग दिन जल्दी उठकर स्नान करते हैं। इसके बाद वे अपने सांस्कृतिक पोशाक पहनते हैं और अग्नि मंदिर जाते हैं और भगवान को दूध और फूल चढ़ाते हैं।
नवरोज उत्सव के दौरान बड़ी संख्या में लोग एक-दूसरे के यहां जाते और एक-दूसरे को तोहफा देते हैं। इस दौरान किसी हरे-भरे मैदान या बाग में सहभोज करने की भी पुरानी परंपरा रही है। इस मौके पर परंपरागत भोजन बनाया जाता है और लोग इसका मजा उठाते हैं। पारसी व्यंजनों में धंसक, मीठी सेव दही, झींगे, फरचा, बेरी पुलाव और बहुत कुछ शामिल है। पारसी लोग अपने देवता की पूजा भी इस मौके पर करते हैं और अपने राजा को याद करते हैं।