नवभारत डिजिटल डेस्क: हर साल 13 फरवरी को भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। हालांकि, कई लोगों को इस दिन को लेकर भ्रम होता है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है। लेकिन भारत में राष्ट्रीय महिला दिवस को स्वतंत्रता सेनानी, कवयित्री और समाज सुधारक सरोजिनी नायडू की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है। उनके योगदान को सम्मान देने के लिए 2014 में इस दिन को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई।
सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद के एक शिक्षित बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता अघोरेनाथ चट्टोपाध्याय एक वैज्ञानिक और शिक्षाविद थे, जबकि उनकी मां बरदा सुंदरी देवी एक कवयित्री थीं। उन्होंने बचपन से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था और उनकी लेखनी में राष्ट्रीयता, सामाजिक न्याय और महिलाओं की स्थिति को लेकर गहरी संवेदनशीलता थी।
सरोजिनी नायडू को भारत की कोकिला (The Nightingale of India) कहा जाता है क्योंकि वे अपनी कविताओं को मधुर स्वर में प्रस्तुत करती थीं। लेकिन वे सिर्फ एक महान कवयित्री ही नहीं, बल्कि एक सशक्त स्वतंत्रता सेनानी भी थीं। उन्होंने महिला अधिकारों और स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2014 में भारत सरकार ने सरोजिनी नायडू की जयंती को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इसके पीछे मुख्य कारण था महिलाओं के अधिकारों के प्रति उनके योगदान को सम्मान देना।
सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनीं और स्वतंत्र भारत की पहली महिला राज्यपाल (उत्तर प्रदेश) बनने का गौरव भी उन्हें प्राप्त हुआ। उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई, जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
राष्ट्रीय महिला दिवस महिलाओं की उपलब्धियों और अधिकारों को पहचानने और उन्हें सशक्त बनाने का प्रतीक है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि महिलाएं समाज का अभिन्न अंग हैं और उन्हें समान अवसर व सम्मान दिया जाना चाहिए।
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आज की महिलाएं शिक्षा, विज्ञान, कला, राजनीति, खेल और व्यवसाय जैसे क्षेत्रों में अपनी सफलता के झंडे गाड़ रही हैं। इस दिवस का उद्देश्य महिलाओं को प्रेरित करना और लैंगिक समानता के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।
सरोजिनी नायडू का योगदान भारतीय समाज में महिला सशक्तिकरण के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के साथ-साथ महिलाओं की आवाज को बुलंद किया। उनकी जयंती को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाना उनके योगदान को सम्मान देने का एक महत्वपूर्ण कदम है।