रेलवे में भीड़ (सौजन्य-IANS)
Reena Devi Supreme Court Case: मुंबई में लोकल से मरीन लाइन्स से चर्चगेट तक यात्रा करते समय हुई दुर्घटना में मृत्यु के बाद मुआवजे को लेकर ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में प्रथम अपील दायर की गई। इस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश एम।डब्ल्यू। चांदवानी ने नागपुर रेलवे दावा न्यायाधिकरण द्वारा खारिज किए गए मुआवजे के दावे को स्वीकार कर लिया। हाई कोर्ट ने मृतक के कानूनी वारिसों को 8,00,000 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।
यह अपील नागरबाई, दिगंबर और मंगेश गांधकवाड़ द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने मृतक मारोती की मृत्यु के लिए मुआवजे की मांग की थी। मारोती की मृत्यु 26 मई 2014 को एक रेल दुर्घटना में हुई थी। मृतक के वारिसों (अपीलकर्ताओं) ने दावा किया था कि मारोती लोकल ट्रेन से मरीन लाइन्स से चर्चगेट की यात्रा कर रहे थे। अचानक और हिंसक झटके के कारण वह अपना संतुलन खो बैठे और चलती ट्रेन से गिर गए जिससे उनकी मौत हो गई।
रेलवे दावा न्यायाधिकरण ने अपीलकर्ताओं के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि मृतक वास्तविक यात्री नहीं था क्योंकि उसके पास से कोई टिकट नहीं मिला था। ट्रिब्यूनल ने यह भी राय दी थी कि मृतक के पिता दिगंबर चश्मदीद गवाह नहीं थे और अपीलकर्ता यह साबित करने में विफल रहे कि मारोती की मृत्यु एक ‘अप्रत्याशित घटना’ में हुई। हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया।
1. नागरबाई : ₹3,00,000 रुपये
2. दिगंबर : ₹4,00,000 रुपये
3. मंगेश : ₹1,00,000 रुपये
कोर्ट ने रेलवे अधिकारियों द्वारा 8 जून 2015 को तैयार किए गए जांच नोट का उल्लेख किया, जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया था कि मृतक एक अज्ञात लोकल ट्रेन से नीचे गिर गया था। एक बार जब यह पाया गया कि मृतक यात्री ट्रेन में यात्रा कर रहा था, तो सुप्रीम कोर्ट के ‘यूनियन ऑफ इंडिया बनाम रीना देवी’ मामले में दिए गए निर्णय के तहत यह अनुमान लागू होता है कि वह वास्तविक यात्री था। सुप्रीम कोर्ट ने यह राय दी थी कि मृतक के पास टिकट न होना इस दावे को नकार नहीं सकता कि वह वास्तविक यात्री था।
रेलवे ने हाई कोर्ट में यह तर्क भी दिया था कि मृतक स्वयं दुर्घटना के लिए जिम्मेदार था क्योंकि वह ट्रेन के दरवाजे से बाहर झुक रहा था, जो लापरवाही का कृत्य था। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रेलवे अधिनियम की धारा 124-ए के तहत ‘अप्रत्याशित घटना’ के मामले में ‘सख्त दायित्व’ या ‘दोष रहित दायित्व’ लागू होता है।
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इस धारा में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि यदि यात्री की मृत्यु उसकी अपनी लापरवाही के कारण होती है, तो मुआवजा देय नहीं होगा। यह पूरी तरह से अप्रासंगिक है कि गलती किसकी थी। कोर्ट ने कहा कि मुआवजा तभी नहीं दिया जा सकता जब मृत्यु धारा 124-ए के परंतुक (a) से (e) में वर्णित कारणों से हुई हो, जैसे आत्महत्या, स्वयं पहुंचाई गई चोट, आपराधिक कृत्य, नशे की स्थिति में किया गया कृत्य या प्राकृतिक कारण/बीमारी हो।