महाराष्ट्र विधानसभा (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: महाराष्ट्र विधानसभा में जनसुरक्षा विधेयक सर्वसम्मति से पारित हो गया।विधान परिषद की मुहर लगने और राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन जाएगा।यही देखना होगा कि इस सख्त कानून का कहीं बेजा इस्तेमाल न हो।छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश व ओडिशा में नक्सलवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए वहां अलग कानून बनाए गए।इसी तरह का कदम उठाते हुए महाराष्ट्र में भी जनसुरक्षा विधेयक लाया गया।मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने आश्वस्त किया है कि यह कानून पत्रकारों, राजनेताओं, शिक्षकों, किसानों, वामपंथी छात्र संगठन के आंदोलनकारियों या किसी भी आम नागरिक के खिलाफ नहीं है।
लोकतांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन के उनके सभी अधिकार कायम हैं।यदि किसी विरोधी प्रदर्शन में हिंसा होती है तो उसके लिए भारतीय न्याय संहिता है।यदि किसी की गिरफ्तारी होती हैं तो उसके खिलाफ एक महीने के भीतर अदालत जाने का प्रावधान है।यद्यपि सीएम ने कहा है कि किसी को डरने की जरूरत नहीं है लेकिन अतिवादी वामपंथी विचारधारा वालों को इस कानून के रहते विशेष सतर्क रहना होगा।अगर कोई संगठन प्रतिबंधित है और कोई व्यक्ति उसका सदस्य है तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है।संविधान और संसद को नकारनेवालों पर कार्रवाई की जाएगी।
शंका हो सकती है कि क्या पिछड़े आदिवासियों के बीच काम करनेवाले कार्यकर्ता, किसी सरकारी प्रोजेक्ट जैसे बांध या खदान से प्रभावित होनेवाले व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए आवाज उठानेवाले भी अर्बन नक्सल करार दिए जा सकते हैं? नए बदलाव के बाद किसी भी व्यक्ति की बजाय गैरकानूनी संगठन पर कार्रवाई होगी।इसके लिए पुलिस को व्यापक अधिकार दिया जाएगा।शहरी नक्सलवादी या अर्बन नक्सल न कहते हुए ‘उग्रवादी वाम संगठन’ का उल्लेख किया गया है।इस कानून के अंतर्गत कार्रवाई होने से पहले संबंधित प्रकरण सलाहकार मंडल के पास जाएगा।
मंडल का निर्णय होने तक किसी भी संगठन को इस कानून के तहत नहीं लाया जाएगा।हाईकोर्ट के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश मंडल के अध्यक्ष होंगे।सदस्यों में जिला न्यायाधीश व हाईकोर्ट के सरकारी वकील का समावेश होगा।मामले की जांच उपयुक्त दर्जे के अधिकारियों द्वारा की जाएगी।कोई भी देश ऐसे संगठनों को बर्दाश्त नहीं कर सकता जो संविधान व राष्ट्र की संप्रभुता को चुनौती देने का दुस्साहस करते हैं और सशस्त्र संघर्ष कर व्यवस्था को तहस-नहस करना चाहते हैं।इस समय भी ऐसे संगठनों के खिलाफ कानून हैं लेकिन सरकार शायद उन्हें अपूर्ण मानती है।इसीलिए नया कानून लाया जा रहा है।कानून जो भी हो, उसमें प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत अवश्य होने चाहिए।इसका राजनीतिक इस्तेमाल कदापि नहीं होना चाहिए।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा