नंदी बैल की पूजा (सौ. सोशल मीडिया)
सावन सोमवार की शुरुआत हो गई है जहां पर पहले सोमवार का व्रत 14 जुलाई को रखा गया। व्रत के दौरान भगवान शिव की आराधना शिवभक्त भक्ति के साथ करते है। शहरी इलाकों के अलावा ग्रामीण इलाकों में सावन की अलग ही धूम देखने के लिए मिलती है। सावन सोमवार के दिन कई इलाकों में खास तरह की परंपरा निभाई जाती है।
उत्तर भारत से लेकर कुछ राज्यों में शिवपूजा से पहले नंदी बैल की पूजा की जाती है। कहते है कि, भगवान शिव की पूजा करने से पहले नंदी पूजा करने से भगवान तक प्रार्थना आसानी से पहुंचती है। चलिए जानते है कैसे की जाती है नंदी बैल की पूजा।
आपको बताते चलें, सावन सोमवार की परंपरा उत्तरप्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में भी निभाई जाती है। सोमवार की सुबह गांव के लोग नंदी बैल की पूजा विधि-विधान के साथ करते है। सावन के पहले सोमवार की सुबह लोग नंदी बैल को विशेष सम्मान देते हैं। पूजा की बात की जाए तो, सावन सोमवार के दिन सुबह-सुबह ग्रामीण नंदी बैल को विधि-विधान से स्नान कराते हैं।
स्नान के बाद उन्हें हल्दी और चंदन का लेप लगाया जाता है, जो पवित्रता और शुभता का प्रतीक है। इसके बाद भोग में मीठा परोसा जाता है। जिसमें गुड़, रोटी या अन्य पारंपरिक पकवान शामिल होते है। नंदी महाराज को भोग अर्पित करने के बाद ग्रामीण पास के शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
यहां पर नंदी बैल की पूजा वाली परंपरा का अलग महत्व है। यह परंपरा न केवल ग्रामीणों की भगवान शिव के प्रति अटूट आस्था को दर्शाती है, बल्कि पशुधन के प्रति उनके सम्मान को भी उजागर करती है। परंपरा को समझें, तो नंदी को भारतीय संस्कृति में केवल एक वाहन नहीं, बल्कि एक पवित्र जीव और शिवगणों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। इस विशिष्ट पूजा के माध्यम से ग्रामीण यह संदेश देते हैं कि प्रकृति और उसके सभी तत्वों का सम्मान करना भी आध्यात्मिक जीवन का अंग है।
इस परंपरा की बात की जाए तो, आधुनिक युग में यह परंपरा ग्रामीण भारत में बड़े ही निष्ठा से निभाई जाती है। नंदी बैल की पूजा एक ओर तो शिवभक्ति का मार्ग है, वहीं दूसरी ओर यह पशु-कल्याण और प्रकृति के प्रति आभार का प्रतीक भी है। बदलते समय में आज भी इस प्रकार की परंपरा कायम है।
यह भी पढ़ें–विवाह में हो रही है देर तो सावन के मंगलवार को कुंवारी कन्याएं करें ये महाउपाय
एक अन्य परंपरा राजस्थान की राजधानी जयपुर में प्रसिद्ध है। यहां ताड़केश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक दूध या जल से नहीं बल्कि 51 किलो घी से किया जाता है. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। यहां पर इस अनोखी परंपरा को लेकर यहां के लोगों का कहना है कि, जो भी व्यक्ति यहां शिवलिंग पर घी से अभिषेक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यही वजह है कि दूर-दूर से लोग इस अनूठे अभिषेक के लिए मंदिर पहुंचते हैं। बता दें कि, इस मंदिर की वास्तु रूपरेखा,जयपुर रियासत के प्रमुख वास्तुविद विद्याधर जी ने तैयार की थी। मंदिर के प्रांगण में स्थित भव्य पितल की नंदी महाराज की प्रतिमा भी एक खास आकर्षण है। लोग यहां पर बड़ी संख्या में पहुंचते है।