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मुंबई कबूतरखाना विवाद: बॉम्बे हाईकोर्ट की सुनवाई, जैन समाज ने कहा- ‘परिंदों को बचाना हमारा धर्म’

Mumbai News: : दादर कबूतरखाना को बीएमसी ने कोर्ट के आदेश के बाद बंद कर दिया था। इसके बाद जैन समाज ने कोर्ट के खिलाफ जाने की धमकी दी थी। इस मामले पर बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई हुई।

  • By सोनाली चावरे
Updated On: Aug 12, 2025 | 07:44 PM

मुंबई कबूतरखाना विवाद (pic credit; social media)

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Mumbai Pigeon House Controversy: दादर कबूतरखाना में कबूतरों को दाना खिलाने पर लगी पाबंदी पर सुनवाई बुधवार (13 अगस्त) को बॉम्बे हाईकोर्ट में होगी। जैन महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललित गांधी के आह्वान पर जैन समाज के साधु संतों सहित जैन समाज के पदाधिकारी और कार्यकर्ता इस विषय पर बोलने से कतरा रहे हैं, लेकिन उम्मीद जता रहे हैं कि जैन समाज के आस्था और धर्म को देखते हुए कोर्ट उन्हें कबूतरों को दाना खिलाने निर्णय देगी।

विधानसभा सत्र के दौरान बीजेपी विधायक चित्र बाघ व शिवसेना शिंदे गुट विधायक मनीषा कायंदे ने विधान परिषद में कबूतरों से होने वाली बीमारी का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कबूतरों की बीट और पंखों को फेफड़ों के संक्रमण और अन्य श्वसन रोगों से जोड़ने वाले अध्ययनों का हवाला दिया। उद्योग मंत्री उदय सामंत ने कहा कि मुंबई में कबूतरों को खिलाने के लिए 51 निर्धारित स्थान हैं और सदन को आश्वासन दिया कि सरकार नगर निगम को उन्हें तुरंत बंद करने का निर्देश देगी।

4 जुलाई को दादर कबूतरखाने के अवैध हिस्से को ध्वस्त कर दिया गया था। ऐसा दावा किया जा रहा है कि कबूतरखानों से आसपास रहने वाले निवासियों में सांस संबंधी बीमारी बढ़ रही है। कबूतरों के नजदीक रहने वाले लोगों में हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस जैसी बीमारी भी हो रही है। मुंबई में करीब 51 कबूतरखानों को बीएमसी ने आधिकारिक तौर पर मंजूरी दी है, लेकिन 500 से अधिक स्थानों पर अनाधिकृत तौर पर कबूतरखाना चलाया जा रहा था।

यह भी पढ़ें- धर्म के खिलाफ गए तो कोर्ट को नहीं मानेंगे, जैन समाज की धमकी- जरूरत पड़ने पर शस्त्र भी उठाएंगे

लोगों के लिए कबूतरखाना खतरनाक

वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. सुजीत राजन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है, जिसमें कहा गया है कि कबूतरों की बीट के लंबे समय तक संपर्क में रहना फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, जिससे फाइब्रॉटिक हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस जैसी गंभीर फेफड़ों की बीमारियां हो सकती है। 2018 में किशोरों में फाइब्रॉटिक हाइपर सेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस पाया गया था और दुर्भाग्य से, हाल के वर्षों में उनमें से कुछ की मृत्यु हो गई है, क्योंकि एंटी-फाइब्रोटिक दवाएं इस फाइब्रोसिस के खिलाफ प्रभावी नहीं हैं।

एंटी-फाइब्रोटिक दवाएं फाइब्रोसिस की प्रगति को धीमा कर सकती हैं, लेकिन इसे पूरी तरह से ठीक नहीं कर सकतीं, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर मरीजों को कृत्रिम ऑक्सीजन और उपशामक देखभाल की आवश्यकता होती है। कोर्ट ने डॉ. राजन को कबूतरों के खतरे के संबंध में बीएमसी द्वारा प्रस्तुत हलफनामे पर अपनी राय व्यक्त करने का निर्देश दिया था। डॉ. राजन ने 2018 में दायर याचिका पर भी अपनी स्थिति स्पष्ट की थी और अदालत में प्रस्तुत हलफनामे में बताया था कि कबूतरों के झुंड किस प्रकार स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करते हैं।

पर्यावरण सेना ने कबूतरखाना बंद होने की मांग

महाराष्ट्र नवनिर्माण पर्यावरण सेना पिछले कुछ महीनों से दादर कबूतरखाने को हटाने की मांग कर रही है। मनसे पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष जय श्रृंगारपुरे ने कहा कि दादर कबूतरखाना से सांस संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि कबूतरखाना पुराना है और इसे हटाया नहीं जा सकता तो यहां पर सफाई मार्शल की नियुक्ति की जाए और कबूतरों को दाना डालना बंद किया जाए। नागरिकों के जीवन से अधिक महत्वपूर्ण कबूतर नहीं हैं। मुंबई में कबूतरों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, जिससे सांस संबंधी बीमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है।

जैन समाज अनशन करेगा

जैन मुनि नीलेश चंद्र विजय ने कहा कि हम शांतिनाथ भगवान के भक्त हैं। शांतिनाथ भगवान एक कबूतर के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, अभी तो 10 हजार से ज्यादा कबूतर मर गए। हम भगवान शांतिनाथ के रास्ते पर चलेंगे। उन्होंने कहा कि पर्युषण पर्व के बाद इस मुद्दे पर अगला कदम तय किया जाएगा और कबूतरों को दाना देने पर रोक के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन शुरू होगा। उन्होंने कहा कि जैन समाज शांतिप्रिय है, शस्त्र उठाना हमारा काम नहीं है। हम संविधान, कोर्ट और सरकार का सम्मान करते हैं।

जैन मुनि ने आरोप लगाया कि चुनाव को ध्यान में रखते हुए इस तरह के कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि बीएमसी से कबूतरों को दाना डालने की अनुमति मांगी गई है, लेकिन अगर बीएमसी, कोर्ट और प्रशासन ने नकारात्मक रुख अपनाया तो देशभर से लाखों जैन यहां इकट्ठा होकर शांतिपूर्ण विरोध करेंगे। जैन धर्म में जीव दया सर्वोपरि है। चींटी से लेकर हाथी तक किसी भी जीव की हत्या हमारे धर्म में वर्जित है। हम सत्याग्रह और अनशन का रास्ता अपनाएंगे।

115 वर्ष पुराना है कबूतरखाना

जैन धर्म के 16वें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ का देरासर यहां पर करीब 115 वर्ष पुराना है। देरासर निर्माण के समय से ही कबूतरखाना अस्तित्व में है। मान्यता है कि भगवान शांतिनाथ का देरासर जहां भी होगा वहां कबूतरों को दाना चुगाने की व्यवस्था जरूर होगी। देरासर में आने वाले श्रद्धालु पहले यहां कबूतरों को खुले में दाना चुगाते थे। उस समय यहां पर वाहनों की संख्या कम थी जिससे कोई रेलिंग नहीं लगी थी, लेकिन जैसे जैसे भीड़भाड़ और वाहनों की संख्या बढ़ने लगी तो अक्सर कबूतरों का एक्सीडेंट होने लगा।

1954 में तत्कालीन बॉम्बे की पहली महिला मेयर सुलोचना एम. मोदी ने कबूतरों को दाना चुगाने के लिए यहां की जमीन कबूतरखाना ट्रस्ट को लीज पर दिया। 1954 में पूरे गोल सर्कल को कवर करते हुए रेलिंग लगाई गई और बीच में एक फव्वारा लगाया गया। कबूतरखाना की रेलिंग और फव्वारा को प्राचीन वैभव संरक्षण के तहत हेरिटेज घोषित किया गया है।

सांस्कृतिक धरोहर में शामिल दादर कबूतरखाना को मुंबई के विरासत के रूप में भी देखा जाता है। दादर रेलवे स्टेशन (पश्चिम) में कुछ ही दूरी पर उड़ते हुए कबूतरों का झुंड दादर कबूतरखाना दादर का एक ऐसा लैंडमार्क है, जहां पर अक्सर लोग एक दूसरे का इंतजार करते हुए मिल जायेंगे।

दादर कबूतरखाने को कबूतरों का सबसे बड़ा सराय माना जाता है। इस कबूतरखाने में प्रतिदिन एक लाख से अधिक कबूतर दाना चुगने के लिए आते थे। कबूतरों को प्रतिदिन 50 हजार रुपये का दाना खिलाया जाता था। भुना चना, बाजरी, ज्वार आदि अनाज की करीब 60 बोरी रोज की खपत थी। दादर कबूतरखाना ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी नरेंद्र मेहता के मुताबिक कबूतरखाना का वार्षिक बजट 1 करोड़ 80 लाख रूपये है। करीब 15 लाख रूपये महीने इन कबूतरों के दाना, चिकित्सा व रखरखाव पर खर्च किया जाता रहा।

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Published On: Aug 12, 2025 | 06:21 PM

Topics:  

  • Bombay High Court
  • Devendra Fadnavis
  • Maharashtra News
  • Mumbai
  • Mumbai News

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