शिबू सोरेन, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Shibu Soren News: झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का आज (सोमवार) निधन हो गया। उनका लगभग एक महीने से दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में इलाज चल रहा था। शिबू सोरेन के जीवन पर कई विवाद भी रहे, जिनमें एक प्रमुख घटना 2004 की है। 22 मई 2004 को जब मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, तो शिबू सोरेन को भी 67 सदस्यीय कैबिनेट में शामिल किया गया और उन्हें कोयला मंत्री बनाया गया।
हालांकि, महज दो महीने बाद जुलाई 2004 में, झारखंड की जामताड़ा कोर्ट ने 1975 में हुए चिरुडीह नरसंहार मामले में उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिया। इससे उनकी राजनीतिक जिंदगी में एक नया विवाद पैदा हो गया। शिबू सोरेन इस अरेस्ट वारंट के बाद फरार हो गए थे और फिर 30 जुलाई 2004 को मीडिया के सामने आ गए थे। यह तब हुआ जब झारखंड हाईकोर्ट ने उन्हें 2 अगस्त 2004 तक आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था।
झारखंड के जामताड़ा में एक कोर्ट ने 17 जुलाई 2004 को झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रमुख शिबू सोरेन सहित कई अन्य आरोपियों के खिलाफ नॉन बेलेबल अरेस्ट वारंट जारी किया। यह मामला 1975 में हुए चिरुडीह नरसंहार से जुड़ा है, जिसमें 11 लोगों की हत्या हुई थी। आरोपियों पर मामला दर्ज होने के बावजूद वे फरार हो गए।
17 जुलाई, 2004 को जामताड़ा के उप-विभागीय न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था, जिसके बाद वे काफी समय तक संघर्ष की स्थिति में रहे। हालांकि, जब झारखंड हाई कोर्ट ने उन्हें 2 अगस्त तक आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया, तो 30 जुलाई को उन्होंने मीडिया के सामने प्रकट होकर अपनी गिरफ्तारी की प्रक्रिया शुरू की।
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शिबू सोरेन ने इस बात से इनकार किया कि वे छिपे हुए थे। उन्होंने कहा, “मैं हमेशा जनता के बीच रहा हूं। आज मैं आप सभी के सामने उपस्थित हुआ हूं।” उन्होंने यह भी बताया कि वे हाई कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रहे थे और कानून का पालन करते हुए 2 अगस्त तक जामताड़ा अदालत में आत्मसमर्पण करेंगे।
1975 में हुए चिरुडीह नरसंहार मामले की सुनवाई के दौरान, 30 साल बाद अदालत ने आरोपी शिबू सोरेन को भगोड़ा घोषित कर दिया। इसके बाद, 21 जुलाई 2004 को केंद्रीय कोयला मंत्री शिबू सोरेन के खिलाफ जारी गैर-जमानती वारंट को पेश करने के लिए रांची पुलिस की एक टीम दिल्ली पहुंची।
शिबू सोरेन
हालांकि सोरेन उस समय अपने सरकारी आवास पर मौजूद नहीं थे, लेकिन पुलिस ने उनके निजी सुरक्षाकर्मी और घरेलू सहायक को कोर्ट का वारंट सौंप दिया। साथ ही, पुलिस ने उनके आवास के मुख्य द्वार पर भी यह वारंट चिपका दिया। राजनीतिक दबाव और मीडिया की निगाहों के चलते शिबू सोरेन ने 24 जुलाई 2004 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कैबिनेट से केंद्रीय कोयला मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
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इसके बाद, 2 अगस्त 2004 को झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन ने जामताड़ा जिला एवं सत्र न्यायालय के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और उन्हें जेल भेज दिया गया। दरअसल, जामताड़ा कोर्ट द्वारा 1984 से एक गैर-जमानती वारंट उनके खिलाफ लंबित था, जिसे जुलाई 2004 में फिर से जारी किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि उसी दिन (2 अगस्त 2004) झारखंड हाई कोर्ट ने चिरुडीह नरसंहार मामले में शिबू सोरेन को सशर्त जमानत भी दे दी थी।
झारखंड विधानसभा चुनाव (फरवरी-मार्च 2005) से पहले, कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के बीच गठबंधन समझौते के तहत, JMM नेता शिबू सोरेन को 27 नवंबर 2004 को केंद्रीय मंत्रिमंडल में दोबारा शामिल किया गया और उन्हें कोयला मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस निर्णय के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक बयान जारी कर कहा कि उन्हें सोरेन का इस्तीफा लेने के लिए मजबूर किया गया था, लेकिन फिर यह मामला पूरी तरह से सुलझा लिया गया।