लोकसभा अध्यक्ष चुनाव (सांकेतिक तस्वीर)
नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम और नई सरकार के शपथग्रहण के बाद से ही लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की चर्चा चल रही है। इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का अकेले दम पर बहुमत न हासिल कर पाना लोकसभा अध्यक्ष के चयन की गहमा-गहमी का सबसे बड़ा कारण है। सूत्रों के मुताबिक टीडीपी स्पीकर पद के लिए अड़ी हुई है। लेकिन बीजेपी किसी भी कीमत पर झुकने को तैयार नहीं है। इसके नेपथ्य में है साल 1999 में एक वोट से गिरी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार।
साल 1998 के चुनाव के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए की सरकार महज़ 13 महीने बाद एक वोट से गिर गई। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिराने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार एक वोट लोकसभा अध्यक्ष की वजह से ही पड़ा था। उस समय लोकसक्षा अध्यक्ष का पद भी तेलगू देशम पार्टी यानी टीडीपी के पास था। जी एम सी बालयोगी लोकसभा स्पीकर की कुर्सी पर थे और उनके एक फैसले ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिरा दी।
1999 में जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से अन्नाद्रमुक (AIDMK) की जयललिता ने समर्थन वापस लिया तो सरकार अल्पमत में आ गई। सदन में शक्ति परीक्षण हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से गिर गई। इस दौरान सरकार के पक्ष में 269 मत पड़े थे जबकि सरकार के विपक्ष में 270 सांसदों ने वोट किया था। विपक्ष के लिए वोट करने वालों में ओडिशा के सीएम गिरिधर गोमांग का नाम भी शामिल था। जिन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए सांसद के तौर पर वोट किया और अटल सरकार गिर गई।
दरअसल, 17 अप्रैल 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का फ्लोर टेस्ट हुआ। उससे पहले कांग्रेस ने फरवरी में ही सांसद गिरिधर गोमांग को ओडिशा का मुख्यमंत्री बना दिया था। नियमत: आप दो सदनों के सदस्य एक साथ नहीं हो सकते। दो सदनों की जिम्मेदारी होने पर आपको किसी एक सदन से 14 दिनों के भीतर इस्तीफा देना होता है। लेकिन गिरिधर गोमांग सीएम के साथ-साथ सांसद भी बने रहे। इतना ही नहीं वह फ्लोर टेस्ट के दिन संसद में वोटिंग के लिए भी पहुंचे।
जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का फ्लोर टेस्ट शुरू हुआ, तब स्पीकर को यह निर्णय लेना था कि गोमांग वोट करेंगे या नहीं। लेकिन स्पीकर बालयोगी ने बॉल गोमांग के पाले में डाल दी। जिसमें उन्होंने कहा कि वह चाहें तो वोट करें न चाहें तो न करें। गिरिधर गोमांग के विवेक ने पार्टी के आदेशों का पालन करने का फैसला किया। उन्होंने ख़िलाफ में वोट कर दिया और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई।
सियासी गलियारी में चल रही चर्चाओं के मुताबिक यही वह सबसे बड़ी वजह है जिसके लिए बीजेपी स्पीकर की कुर्सी अपने पास रखना चाहती है। वैसे तो टीडीपी अभी एनडीए के पक्ष में मजबूती के साथ खड़ी हुई दिखाई दे रही है। लेकिन सियासत में कौन कब पाला बदल ले या पलटी मार जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। इसीलिए बीजेपी किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 24 जून से संसद का मानसून सत्र शुरू होगा। 26 जून को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किए गए भृतहरि महताब लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव करवा सकते हैं। यही वजह है कि बीजेपी सहयोगी दलों के साथ आम सहमति बनाने में के लिए लगातार मंथन में जुटी हुई है।